शिवराज सरकार ने नौकरशाही के दबाव की परवाह किए बिना ही कमिश्नर प्रणाली लागू करने की दिशा में बढ़ाए कदम
दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों की तरह जल्द ही भोपाल और इंदौर में भी पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने जा रही है। उत्तर प्रदेश के चार शहरों लखनऊ, नोएडा, कानपुर और वाराणसी में भी इसके लागू होने के बाद से आ रही सफलता की सूचनाओं ने मध्य प्रदेश सरकार को उत्साहित कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं गृहमंत्री अमित शाह इसकी प्रशंसा कर चुके हैं। यही कारण है कि मध्य प्रदेश सरकार ने बिना देर किए प्रदेश की राजधानी भोपाल एवं आर्थिक राजधानी के रूप में विख्यात इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने का निश्चय कर लिया।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दो दिन पूर्व इसकी औपचारिक घोषणा कर संदेश दिया कि कानून व्यवस्था के मुद्दे को उनकी सरकार प्राथमिकता से लेती रहेगी। उन्होंने कहा कि यद्यपि प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति बेहतर है। शांति और सद्भाव है, लेकिन हाल के दिनों में कुछ नए तरह के अपराध सामने आए हैं जिनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। ऐसी चुनौतियों से कारगर ढंग से निपटने एवं जनता को बेहतर सेवा देने के लिए दोनों शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने जा रहे हैं।
माना जा रहा है कि भोपाल एवं इंदौर में यदि पुलिस कमिश्नर प्रणाली सफल होती है तो ग्वालियर, जबलपुर जैसे शहरों में भी इसे लागू करने पर विचार किया जा सकता है। यह एक तथ्य है कि राज्य के अन्य शहरों की तुलना में भोपाल एवं इंदौर का विकास तेजी के साथ हो रहा है। हर साल बड़ी संख्या में ग्रामीण अंचलों एवं छोटे शहरों से लोग इन शहरों में आ रहे हैं। इससे यहां की आबादी तेजी से बढ़ रही है। जाहिर है कि इससे कानून व्यवस्था की चुनौतियां भी बढ़ रही हैं। साइबर अपराध की घटनाएं जिस तरह सामने आई हैं उससे भी सरकार की चिंता बढ़ी है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री ने नौकरशाही के दबाव की परवाह किए बिना ही पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा दिया है। पुलिस कमिश्नर को वे सभी मजिस्ट्रेटी अधिकार भी दिए जाएंगे, जो कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी हैं। इससे पुलिस मजबूत होगी तथा अनेक मामलों का अपने स्तर पर ही निस्तारण कर सकेगी।
ऐसा भी नहीं है कि यह फैसला एकाएक कर लिया गया है। इसके लिए सरकार काफी समय से तैयारी कर रही थी। दरअसल, प्रदेश में माफिया के खिलाफ सरकार ने अभियान चला रखा है। भोपाल और इंदौर ऐसे शहर हैं, जहां माफिया की चुनौतियां अधिक हैं। कलेक्टरों के ऊपर विकास एवं न्यायिक कार्य को लेकर भी दबाव रहता है, क्योंकि प्रदेश के छवि-निर्माण में उनकी बड़ी भूमिका है। पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने से कलेक्टरों पर काम का दबाव कम होगा और वे विकास पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकेंगे। पुलिस एवं कानून व्यवस्था से जुड़े मामलों में पुलिस और प्रशासन के बीच का द्वंद्व समाप्त होगा। यह भी एक कारण है कि सरकार ने दोनों शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने का निर्णय लिया है।
वैसे भी प्रदेश के दो शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की योजना नई नहीं है। इसका प्रस्ताव सबसे पहले तीन जून 1981 को तत्कालीन सरकार ने बनाया था। कैबिनेट ने प्रस्ताव को मंजूरी भी दे दी थी, लेकिन नौकरशाही के दबाव एवं अन्य कारणों से इसका क्रियान्वयन नहीं हो सका। दिग्विजय सिंह की सरकार में भी विधानसभा में इसके लिए एक विधेयक प्रस्तुत किया गया और पारित भी हो गया, लेकिन राजभवन से स्वीकृति नहीं मिली, जिसके कारण मामला लटक गया। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने पर 2012 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल-इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने का इरादा जाहिर किया था। वर्ष 2018 में इसका प्रस्ताव भी तैयार कर लिया गया, लेकिन यह कार्यरूप में परिणत नहीं हो सका। लगभग चार दशकों के बाद अब शिवराज सरकार पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की योजना साकार करने जा रही है। उन्होंने किसी को भनक दिए बिना ही इसकी घोषणा कर दी।
मुख्यमंत्री अच्छी तरह जानते हैं कि इस तरह के कठोर फैसले एक झटके में ही लिए जा सकते हैं। वैसे भी सत्ता की चौथी पारी में मुख्यमंत्री बड़े-बड़े निर्णय इसी अंदाज में कर रहे हैं। यही वजह है कि अब तक पुलिस कमिश्नर प्रणाली से इत्तेफाक नहीं रखने वाले आइएएस संवर्ग के अधिकारी भी चुप हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि अब मुख्यमंत्री कदम वापस लेने वाले नहीं हैं। पुलिस के अनेक वर्तमान एवं पूर्व अधिकारी सरकार के इस निर्णय की सराहना कर रहे हैं। उनका मानना है कि जिस तरह से अपराध की प्रकृति में बदलाव आया है, साइबर अपराध बढ़ रहा है, उसे देखते हुए पुलिस को अधिकार संपन्न बनाना बड़ी जरूरत है। किसी भी निर्णय को लागू कराने के लिए उन्हें मजिस्ट्रेट से आदेश लेने के लिए भटकना नहीं पड़ता है। ऐसे में सरकार ने यह संकेत दिया है कि इसे जल्द लागू किया जा सकता है।