चीन की लोन डिप्लोमेसी: गरीब मुल्कों की एकता और अखंडता के लिए खतरा बना ड्रैगन, अमेरिकी रिपोर्ट में खुलासा
चीन की महाशक्ति बनने की होड़ में पूरी दुनिया का शक्ति संतुलन अस्थिर हो गया है। चीन की खतरनाक लोन डिप्लोमेसी ने कई देशों को अपने कर्ज के चंगुल में फंसा दिया है। जी हां, चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना में कई देश चीन के कर्ज में डूब चुके हैं। बता दें कि चीन की बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट दुनिया की सबसे महंगी परियोजना है। अमेरिका में वर्जिनिया के विलियम एंड मैरी यूनिवर्सिटी स्थित एडडाटा रिसर्च लैब के हालिया रिपोर्ट के अनुसार 18 वर्षों के भीतर चीन ने 15 देशों को 13,427 परियोजनाओं के लिए करीब 834 बिलियन डालर की धनराशि निवेश या ऋण के तौर पर दिया है। इस रिपोर्ट को तैयार करने में चार वर्ष का वक्त लगा है। इसमें चीन के सभी तक कर्ज, खर्च और निवेश की जानकारी जुटाई गई है। आइए जानते हैं कि क्या है चीन की लोन डिप्लोमेसी। इसके क्या होंगे दूरगामी परिणाम। आखिर चीन किस योजना पर कर रहा है काम। भारत किस तरह से हो रहा है प्रभावित।
गरीब मुल्कों की एकता और अखंडता के लिए खतरा बना चीन
प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि चीन ने बहुत चतुराई से कई मुल्कों को अपने इस जाल में फंसाया है। चीन ने इस प्रोजेक्ट की आड़ में करीब 385 बिलियन डालर तक का कर्ज कई गरीब देशों को दिया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका की यह रिपोर्ट बेहद चौंकाने वाली है। इससे चीन की रणनीति को आसानी से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि चीन इसके जरिए कई गरीब मुल्कों को आर्थिक गुलामी की ओर ले जा रहा है। चीन की यह रणनीति उन मुल्कों की एकता और अखंडता के लिए खतरनाक है। गौरतलब है कि चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने वर्ष 2013 में सत्ता में आने के बाद अरबों डालर की इस परियोजना का शुभारंभ किया। चीन की यह परियोजना दक्षिणपूर्व एशिया, मध्य एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका और यूरोप को सड़क एवं समुद्र मार्ग से जोड़ेगी।
कर्ज नहीं चुका पाने वाले मुल्क भी परियोजना में शामिल
एडडाटा के कार्यकारी निदेशक ब्रैड पार्क्स ने इस संदर्भ में एक एशियाई मुल्क लाओस का जिक्र किया है। उनका कहना है कि दक्षिण पश्चिम चीन को सीधे दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ने वाली चीनी रेल परियोजना में एक गरीब देश लाओस भी शामिल है। उन्होंने कहा कि यह मुल्क इतना गरीब है कि इसकी लागत का एक हिस्से का भी खर्च वह वहन नहीं कर सकता। बावजूद इसके 59 बिलियन डालर की इस योजना में उसे शामिल किया गया है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सिंतबर 2020 में लाओस दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया था। इस स्थिति से निपटने के लिए लाओस ने चीन को अपनी एक बड़ी संपत्ति बेच दी है। बता दें कि यह परियोजना चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की एक महत्वकांक्षी परियोजना है। चीन का दावा है कि इस परियोजना के तहत वह अंतरराष्ट्रीय मार्गों का निर्माण कर रहा है। चीन की इस परियोजना के कर्ज के जाल में श्रीलंका और नेपाल जैसे छोटे देश भी फंसते जा रहे हैं। श्रीलंका को अपना हंबनटोटा बंदरगाह चीन को 99 साल के लीज पर देना पड़ा है।
भारत ने किया इस योजना का बहिष्कार
चीन की इस परियोजना का भारत ने विरोध किया है। दरअसल, चीन की यह योजना पाकिस्तान आर्थिक गलियारा यानी गुलाम कश्मीर से होकर गुजरेगा। यह बीआरआइ की प्रमुख परियोजना है। चीन बीआरआइ के तहत पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को 80 करोड़ डालर की आनुमानित लागत से विकास कर रहा है। चीन भले ही बार-बार यह दोहरा रहा है कि ग्वादर बंदरगाह सीपीइसी के तहत आर्थिक और व्यावसायिक है, लेकिन इसके पीछे चीन की सामरिक मंशा दिखाई पड़ रही है।