नीरज चोपड़ा मुश्किल वक्त में केवल भारतीय सेना ने दिया साथ, एथलेटिक्स में पहला ओलिंपिक स्वर्ण जीत रचा इतिहास
नीरज चोपड़ा पर आज धनवर्षा हो रही है। हरियाणा ही नहीं अन्य प्रदेशों की सरकारें भी करोड़ों की राशि न्योछावर कर रही हैं। लेकन जब नीरज को प्रोत्साहन की, स्नेह की जरूरत थी तो भारतीय सेना ही ऐसी थी, जिसने उनका आलिंगन किया था। नीरज ने 2016 में जब जूनियर विश्व चैंपियनशिप में भाला फेंकने का रिकार्ड तोड़ा था, तो भारतीय सेना ने ही उन्हें सीधे नायब सूबेदार के पद पर नियुक्त किया और नीरज को पुणे में मिशन ओलंपिक विंग और आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट में उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था की। सेना की मिशन ओलंपिक विंग प्रतिभाशाली भारतीय खिलाड़ियों को तराशने का काम करती है। सेना में ही उन्हें काशीनाथ नायक जैसे कोच मिले।
काशीनाथ नायक ने सन 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य पदक जीत चुके हैं। यह सेना ही थी, जिसने एशियाई खेलों में स्वर्णपदक जीतने के बाद नीरज को सूबेदार के पद पर पदोन्नत किया था। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि नीरज की स्वर्णिम उपलब्धि के बाद सेना उन्हें पदोन्नत करने या उनके लिए किसी पुरस्कार राशि की घोषणा क्यों नहीं कर रही है। इसका कारण यह है कि सेना में पदोन्नति की जो व्यवस्था थी, उसके तहत नीरज को सूबेदार तक पदोन्नोति दी जा चुकी है। अब उन्हें यदि आगे पदोन्नति दी जाती है तो सेना को अपने नियमों में परिवर्तन करना होगा, और इसके लिए रक्षा मंत्रालय की सहमति आवश्यक होगी। रही बात नकद पुरस्कार राशि की तो सेना के पास ऐसा कोई फंड नहीं होता। इसलिए सेना विवश है।
उल्लेखनीय है कि सेना की सेवा के दौरान ही बीते पांच वर्षों का लगभग पूरा समय नीरज ने विदेश में प्रशिक्षण लेते हुए बिताया है। भारत में इस दौरान वह कम ही रहे। इस अवधि में नीरज को भाला फेंकने का प्रशिक्षण देने के लिए दुनिया के सबसे उत्कृष्ट और महंगे प्रशिक्षक क्लाउस बार्टोनिट्ज़, गैरी कैल्वर्ट, वर्नर डेनियल की सेवाएं ली गईं । कभी न टूटने वाला विश्व रिकार्ड बनाने वाले दुनिया के सबसे महंगे कोच जर्मनी के उवे हान को उनके प्रमुख प्रशिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया। उवे हान 106 मीटर भाला फेंक कर न भूतो न भविष्यत बन चुके हैं। सेना ने सबसे बड़ा काम नीरज को मानसिक रूप से शक्तिशाली बनाने का किया है।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में किसी भी खिलाड़ी की मानसिक शक्ति ही निर्णायक भूमिका में होती है। रेसलिंग के मुकाबलों में ओलिंपक में हमने देखा कि कैसे हमारे पहलवान अंतिम क्षणों में जीत को हार में बदल बैठे। दूसरी तरफ नीरज मानसिक रूप से इतने मजबूत थे कि उन्होंने भाला फेंकने के बाद देखा तक नहीं। पीछे घूमे और विजयी मुद्रा में हाथ उठे दिए। नीरज को यह आत्मविश्वास सेना ने ही दी है। सो, नीरज के इस स्वर्णिम प्रदर्शन का श्रेय उनको स्वयं को है और उसके बाद किसी को है तो भारतीय सेना को है। अन्य का नंबर बहुत बाद में आता है।