कभी हाकी स्टिक और जूते खरीदने के नहीं थे पैसे, आज बनीं टोक्यो का चमकता सितारा
शापिंग करना भले ही वंदना कटारिया का शौक हो, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब इस चमकते सितारे के पास अपनी छोटी-छोटी जरूरतें पूरी करने के लिए भी पैसे नहीं होते थे। यहां तक कि वह हाकी स्टिक और जूते नहीं खरीद पाती थी। हास्टल की छुट्टी होने पर जब सभी लड़कियां अपने घर चली जाती थीं, तब वंदना अकेले ही हास्टल में रहती थीं। बकौल वंदना इस मौके पर हमेशा उनकी कोच पूनम लता ने उसकी मदद की।
कोच पूनम लता को अपना आइडियल मानने वाली वंदना की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। 2004 से 2010 तक लखनऊ स्पोर्ट्स हास्टल में वंदना की कोच रहीं पूनम लता के मुताबिक, वंदना जैसी पहले थी, आज भी दो ओलिंपिक खेलने के बाद भी उसमें कुछ बदलाव नहीं आया है। आज भी वह मुझे वैसा ही सम्मान देती है, जैसा पहले दिया करती थी। यह एक बड़े खिलाड़ी की निशानी है। वंदना ने ओलिंपिक में गोल की हैट्रिक करके इतिहास बना दिया है। वह पहली ऐसी महिला खिलाड़ी हैं, जिसने ओलिंपिक में एक ही मैच में तीन गोल मारे हों।
रोशनाबाद से शुरू हुआ सफर टोक्यो तक पहुंचा
उत्तराखंड के रोशानाबाद(हरिद्वार) में एक साधारण से परिवार में जन्मीं वंदना कटारिया के पिता नाहर सिंह ने भेल से सेवानिवृत्त होकर दूध का व्यवसाय शुरू किया था। उनकी सरपरस्ती में वंदना कटारिया ने रोशनाबाद से हाकी की यात्रा शुरू की। उस वक्त गांव में वंदना के इस कदम को लेकर स्थानीय लोगों ने परिवार के साथ उनका भी मजाक उड़ाया था। पिता नाहर सिंह और माता सोरण देवी ने इसकी परवाह न करते हुए वंदना के सपने को साकार करने के लिए हर कदम पर उसकी सहायता की।
पिता के अंतिम दर्शनों से ऊपर उनके सपने को रखा
वंदना कटारिया के पिता का हाल ही में निधन हो गया। वंदना उस वक्त बंगलुरू में टोक्यो ओलिंपिक की तैयारियों में जुटी हुई थी। तब उन्हें पिता के अंतिम दर्शन के लिए जाना था, लेकिन पिता का सपना था कि बेटी ओलंपिक में स्वर्ण जीते और उनके इस सपने को पूरा करने के लिए कटारिया पिता के अंतिम दर्शन को नहीं गई और अपनी प्रैक्टिस जारी रखी। कटारिया ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हुए मैच में शानदार प्रदर्शन कर पिता को श्रद्धांजलि दी है। वंदना के पिता की 30 मई को हार्ट अटैक से निधन हो गया था।