मांँ कात्यायनी की आराधना से मुरादें होती पूरी
औरैया। शारदीय नवरात्रि के छटवे दिन भी नगर व ग्रामीण क्षेत्रों के देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रही। तथा मांँ कात्यायनी को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा अर्चना की गई।
नवरात्रि की प्रतिपदा लगते ही छटवे दिन भी नगर देवी मय हो गया। महिलाएं वह बच्चे मंगल गीत गाकर देवी के भवन पर जा रहे थे। सुबह से ही घर की महिलाओं ने अपने घर में बने पूजा स्थल पर छटवे दिन मांँ कात्यायनी की पूजा कर मनोकामना की तथा अपने पूजा घर को सजा करके विधि विधान से दुर्गा जी की पूजा अर्चना के साथ देवी के छटवे स्वरूप मांँ कात्यायनी की आराधना की।
कहा जाता है कि जिन युवक-युवतियों की शादी में बाधाएं आती हैं। मांँ की पूजा करने से वह बाधाएं दूर करती है। अष्टानी देवी कात्यायनी दुर्गा का छठा स्वरूप है, जो अमोघ फलदाई है। जो अपना सर्वस्व मांँ कात्यायनी के चरणों में निवेदित कर देता है। उसे अलौकिक प्रतिभा प्राप्त हो जाती है। वैवाहिक जीवन में सुख शांति की प्राप्ति होती है। मांँ कात्यायनी देवी को शहद का भोग लगाने पर मनचाहा वरदान प्राप्त होता है। तथा इनकी इनका जाप करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। मांँ कात्यायनी ने शुंभ- निशुंभ से भयंकर युद्ध किया। शुंभ- निशुंभ मांँ को मार डालने की इच्छा से आ गये। मांँ ने उनके बाण काट दिए। तब असुरों ने शक्तियों का प्रयोग किया। देवी ने उन्हें धराशाही कर दिया। शुंभ अष्ट भुजाधारी को देवी ने परास्त कर दिया। देवी ने शंख बजाया जिस पर शेर गर्जना लगाई। जिससे दैत्य डर गये। आकाश में देवता जय जय कार करने लगे। चंडिका ने शूल से दैत्य को मार डाला। फिर उसने 10 हजार भुजाएं बना ली। दुर्गा ने इन्हें भी काट डाला। गदा को भी काट दिया, तथा शूल से छाती को भेद दिया। उन्होंने अनेकों असुरों को मार डाला। अनगिनत असुर युद्ध से भाग गये। देवी व दानवों में भयंकर युद्ध होने लगा। देवी ने बाणों से असुरों को आच्छादित कर दिया। अनगिनत असुरों को मार डाला। असुरों के मारे जाने पर देवता आकाश से फूल की वर्षा करने लगे। नदियां सुरक्षित होकर कल- कल कर बहने लगी। तथा सूर्य भी तेज रोशनी के साथ चमकने लगा। इस प्रकार की कथा प्रचलित है। बीहड़ में स्थित मांँ मंगला काली मंदिर के अलावा शहर की पथवरियन माता,बड़ी माता,संतोषी माता, विंध्यवासिनी, गमा देवी व महामाया काली मंदिर आदि पर श्रद्धालु महिला पुरुषों ने पूजा अर्चना की है , वही मंगला काली मंदिर पर भक्तों खुशी से नाचने गाने व थिरकने लगे। सुबह से लेकर देर शाम तक विभिन्न देवी मंदिरों पर श्रद्धालु भक्तजनों का आना-जाना जारी रहा।