26 November, 2024 (Tuesday)

UNHRC में श्रीलंका के खिलाफ लाए गए प्रस्‍ताव पर क्‍यों अनुपस्थित रहा भारत, जानें 4 बड़े फैक्‍टर, पाकिस्‍तान-चीन के मंसूबे हुए फ्लॉप

चीन और पाकिस्‍तान मिलकर भी श्रीलंका को संकट से नहीं उबार सके। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में श्रीलंका के खिलाफ लाए गए प्रस्‍ताव पर चीन, पाकिस्‍तान और रूस ने इसके विरोध में मतदान किया, लेकिन वह श्रीलंका को इस सकंट से नहीं निकाल पाए। ब्रिटेन की ओर से लाए गए इस प्रस्‍ताव पर 22 देशों ने प्रस्‍ताव के पक्ष में मतदान किया, जबकि 11 देशों ने विरोध में मतदान किया। भारत और जापान समेत 14 देश अनुपस्थित रहे। इस प्रस्‍ताव के पारति होने से श्रीलंका को बड़ा झटका लगा है। इस प्रस्‍ताव के पारित होने के बाद  श्रीलंका लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के साथ चले लंबे गृहयुद्ध के दौरान हुए युद्ध अपराध अब संयुक्त राष्ट्र की जांच के दायरे में आ गया है। इसके साथ ही संयुक्‍त राष्‍ट्र की इस संस्‍था को श्रीलंका में युद्ध अपराधों की जांच, जानकारी जुटाने और साक्ष्‍य एकत्र करने का अधिकार मिल गया है। आखिर भारत इस प्रस्‍ताव पर वोट के दौरान क्‍यों अनुपस्थित रहा। भारत के इस कदम के क्‍या संदेश हैं।

UNHRC में भारत की अनुपस्थित के चार बड़े फैक्‍टर

  • प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि यूएनएचआरसी में भारत ने बीच का रास्‍ता अपनाया है। भारत का यह फैसला उचित, समसामयिक और भारतीय हितों के अनुरूप है। उन्‍होंने कहा कि हालांकि, भारत की कूटनीति के लिए यह एक मुश्किल घड़ी थी, लेकनि मोदी सरकार ने बहुत सूझबूझ का परिचय दिया है। दरअसल, श्रीलंका के मसले पर भारत को तमिल समुदाय के हितों का ख्‍याल रखना था, दूसरी ओर श्रीलंका के साथ अपनी दोस्‍ती का भी निर्वाह करना था। ऐसे में भारत ने प्रस्‍ताव पर मतदान के दौरान अनुपस्थित रहकर अपने संदेश को साफ करने में कामयाब रहा है।
  • उन्‍होंने कहा कि मानवाधिकार मसले पर भारत की स्थिति यूरोपीय देशों की तुलना में थोड़ी भिन्‍न है। भारत के समक्ष श्रीलंका के मानवाधिकार मुद्दों के साथ अपने क्षेत्रीय हितों को भी संतुलित करने की बड़ी चुनौती है। ऐसे में भारत कभी नहीं चाहेगा कि मानवाधिकार के मुद्दे को लेकर वह अपने सामरिक और आर्थिक हितों की अनदेखी करे। श्रीलंका के साथ उसके संबंधों में कटुता उत्‍पन्‍न हो। इसलिए भारत का यह स्‍टैंड एक सराहनीय रहा है।
  • प्रो. पंत ने कहा कि श्रीलंका, भारत का पड़ोसी मुल्‍क है, जिस तरह से पाकिस्‍तान और चीन ने श्रीलंका का खुलकर साथ दिया, ऐसे में भारत को कोलंबों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना एक कठिन कार्य था। उन्‍होंने कहा कि भारत कभी नहीं चाहेगा कि श्रीलंका की पाकिस्‍तान और चीन के साथ निकटता बढ़े। श्रीलंका के साथ पाकिस्‍तान और चीन की निकटता भारत के हितों के अनुरूप नहीं है। ऐसे में श्रीलंका के साथ संबंधों को संतुलित करना भारत के लिए बड़ी चुनौती है।
  • उन्‍होंने कहा कि तमिलों की सुरक्षा और उनके अधिकारों को लेकर भारत पर आंतरिक दबाव भी था। भारत के दक्षिणी प्रांतों ने खासकर तमिलनाडू में तमिलों के हितों को लेकर में लगातार आवाजें उठती रही हैं। ऐसे में  श्रीलंका के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ाना और अपनी स्‍थानीय राजनीति के दबाव से मुक्‍त होना भारत के लिए एक बड़ी चुनौती थी। प्रो पंत ने कहा कि श्रीलंका हमारा पड़ोसी मुल्‍क है। श्रीलंका के साथ हमारे मैत्रीपूर्ण और द्विपक्षीय संबंध हैं। ऐसा करके भारत ने अपनी दोस्‍ती की भी मर्यादा रखी और स्‍थानीय राजनीति को भी संतुलित करने का प्रयास किया है।

संयुक्त राष्ट्र की जांच के दायरे में आया श्रीलंका

सवाल यह है कि इस प्रस्‍ताव के पारित हो जाने के बाद श्रीलंका पर इसका क्‍या असर होगा। दरअलस, इस प्रस्‍ताव के पारति हो जाने के बाद श्रीलंका में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के साथ चले लंबे गृहयुद्ध के दौरान हुए युद्ध अपराध संयुक्त राष्ट्र की जांच के दायरे में आ गए हैं। इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में मंगलवार को एक प्रस्ताव पारित किया गया। इससे यूएन की इस संस्था को श्रीलंका में युद्ध अपराधों की जांच, जानकारी जुटाने और साक्ष्य एकत्र करने के अधिकार मिल गए हैं।

तीन दशक चला था गृहयुद्ध

गौरतलब है कि श्रीलंका में करीब तीन दशक चला गृहयुद्ध वर्ष 2009 में खत्म हुआ था। लिट्टे के खिलाफ अंतिम दौर की लड़ाई में श्रीलंकाई सेना पर बड़े पैमाने पर युद्ध अपराध के आरोप लगाए गए थे। हालांकि, श्रीलंका इससे इन्कार करता रहा है। जबकि कई देश इसकी अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग करते रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय अधिकार समूहों का दावा है कि लिट्टे से निर्णायक लड़ाई में करीब 40 हजार तमिल नागरिकों की हत्या हुई थी। जबकि संयुक्त राष्ट्र का मानना कि 26 वर्ष चले गृहयुद्ध में करीब एक लाख लोगों की मौत हुई।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *