भारत ने कहा- कोलंबो बंदरगाह के ईस्टर्न कंटेनर टर्मिनल पर समझौते का पालन करे श्रीलंका
भारत ने मंगलवार को श्रीलंका से कहा कि वह कोलंबो बंदरगाह के ईस्टर्न कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) के संचालन को लेकर हुए समझौते का पालन करे। भारत की यह प्रतिक्रिया श्रीलंका द्वारा समझौते से हटने के फैसले के बाद आई है।
टर्मिनल के संचालन में भारत और जापान की थी हिस्सेदारी 49 फीसद
श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे की कैबिनेट की बैठक के बाद जारी विज्ञप्ति में कहा गया कि कोलंबो बंदरगाह के ईस्टर्न टर्मिनल का पूरी तरह से संचालन सरकारी एजेंसी श्रीलंका पोर्ट अथॉरिटी (एसएलपीए) द्वारा किया जाएगा। इस टर्मिनल को विकसित करने के लिए भारत, श्रीलंका और जापान के बीच समझौता हुआ था। इसमें कहा गया था कि टर्मिनल के संचालन में भारत और जापान की हिस्सेदारी 49 फीसद और शेष हिस्सेदारी एसएलपीए के पास होगी। बंदरगाह के श्रमिक संगठन टर्मिनल का संचालन दूसरे पक्ष को देने का विरोध कर रहे थे।
राजपक्षे ने वेस्ट टर्मिनल को पीपीपी मॉडल पर विकसित करने के लिए भारत, जापान को आमंत्रित किया
विज्ञप्ति के मुताबिक कैबिनेट ने वेस्ट टर्मिनल को सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी) मॉडल पर विकसित करने के लिए भारत और जापान को आमंत्रित करने का फैसला किया है। हालांकि, इस संबंध में ज्यादा जानकारी नहीं दी गई है।
2019 में एसएलपीए ने टर्मिनल को विकसित करने के लिए भारत और जापान के साथ करार किया था
श्रीलंका की तत्कालीन सिरिसेना सरकार के दौरान 2019 में एसएलपीए ने इस टर्मिनल को विकसित करने के लिए भारत और जापान के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किया था। टर्मिनल के विकास में अदाणी समूह भी शामिल है। पिछले महीने विदेश मंत्री एस. जयशंकर जब श्रीलंका गए थे, तब इस समझौते को लेकर भी बातचीत हुई थी, लेकिन उनकी यात्रा के एक महीने के भीतर ही श्रीलंका ने यह फैसला कर लिया।
भारतीय दूतावास ने कहा- सभी पक्षों को समझौते का पालन करना चाहिए
कोलंबो में भारतीय दूतावास के प्रवक्ता ने मंगलवार को ई-मेल के जरिये जारी बयान में कहा कि श्रीलंका की कैबिनेट ने तीन महीने पहले इस परियोजना को विदेशी निवेशकों के साथ कार्यान्वित करने का फैसला किया था। श्रीलंका सरकार बार-बार समझौते का पालन करने की बात भी करती रही है। प्रवक्ता ने कहा कि सभी पक्षों को समझौते का पालन करना चाहिए। इस मसले पर अदाणी के प्रवक्ता, कोलंबो में जापानी दूतावास और श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे का पक्ष जानने की कोशिश की गई, लेकिन इनसे संपर्क नहीं हो पाया।
चीन के प्रभाव में है श्रीलंका
दरअसल, चीन दक्षिण एशिया में अपना एकछत्र वर्चस्व कायम करना चाहता है। उसकी नजर श्रीलंका पर है। उसने श्रीलंका में भारी मात्रा में निवेश भी किया है। कर्ज नहीं चुकाने पर चीन ने 2016 में श्रीलंका से उसका हंबनटोटा बंदरगाह भी अपने कब्जे में ले लिया था। भारत चीन के प्रभाव को कम करने के लिए श्रीलंका को अपने पाले में करना चाहता है। भारत के लिए रणनीतिक रूप से भी श्रीलंका अहम है। समुद्र के रास्ते भारत में ज्यादातर सामान की आवाजाही श्रीलंका के रास्ते ही होती है।