किसानों और सरकार के बीच वार्ता में आ सकते हैं नए प्रस्ताव, कानूनों को लागू करने का अधिकार राज्यों पर छोड़ सकती है सरकार
कृषि सुधार के लिए पारित कानूनों को लेकर लंबे समय से आंदोलन कर रहे किसानों के साथ सरकार की आठवें दौर की वार्ता में कुछ नए प्रस्ताव पेश किए जा सकते हैं। विज्ञान भवन में शुक्रवार को होने वाली वार्ता में सरकार की तरफ से किसानों के समक्ष नया फार्मूला पेश किया जा सकता है। कानूनों के प्रावधानों की समीक्षा के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन किया जा सकता है। यही नहीं कानूनी प्रावधानों पर एतराज जताने वाले राज्यों के लिए कुछ विशेष शर्तों के साथ रियायत देने पर भी विचार किया जा सकता है।
मांगों पर अड़े किसान
सूत्रों की मानें तो इसके लिए उन राज्यों की सरकारों को पहल करनी होगी। वार्ता में सफलता के लिए किसान संगठनों को भी जिद छोड़कर आगे बढ़ना होगा। आंदोलन कर रहे किसान संगठन अब भी अपना पुराना राग अलाप रहे हैं। उन्होंने दिल्ली के बाहरी हिस्से वाली सड़कों पर ट्रैक्टर मार्च निकाला और अपनी मांगों के माने जाने तक आंदोलन जारी रखने का एलान किया है।
कृषि मंत्री ने कानूनों को किसान हितैषी बताया
उधर, कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से गुरुवार को भी कृषि सुधार कानूनों का समर्थन करने वाले किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने कृषि कानूनों को किसान हितैषी करार दिया। किसान नेता नरेश यादव के नेतृत्व में हरियाणा से पदयात्रा कर यहां पहुंचे किसान प्रतिनिधियों ने तोमर से मुलाकात की। इसके अलावा पंजाब के नानकसर गुरुद्वारे के प्रमुख बाबा लक्खावाल ने तोमर से मुलाकात कर किसान आंदोलन पर चर्चा की।
समाधान निकलने की जताई उम्मीद
आंदोलनकारी किसानों के प्रति सहानुभूति जताते हुए तोमर ने एक बार फिर विश्वास जताया कि शुक्रवार की वार्ता में समस्या का समाधान निकाल लिए जाने की संभावना है। हालांकि समाधान तभी संभव है, जब किसान संगठन भी सरकार के प्रस्तावों पर चर्चा के लिए तैयार हों। बीच का कोई समाधान निकले इसके लिए किसानों को भी अपनी जिद से पीछे हटकर वार्ता में हिस्सा लेना होगा।
कानून लागू करने का अधिकार राज्यों पर छोड़ सकती है सरकार
सूत्रों के मुताबिक सरकार की ओर से आंदोलनकारी किसानों के समक्ष एक ऐसा प्रस्ताव पेश किया जा सकता है, जिसमें इन कानूनों को लागू करने का अधिकार राज्यों पर छोड़ा जा सकता है। लेकिन इसमें राज्यों की भूमिका के साथ कुछ शर्तें भी जोड़ी जा सकती हैं। दूसरा प्रस्ताव इस आशय का भी रखा जा सकता है, जिसमें इन कृषि कानूनों की समीक्षा के लिए विशेषज्ञों की समिति का गठन करना होगा।
एमएसपी पर नहीं हुई है चर्चा
वार्ता के किसी दौर में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी वाली मांग पर चर्चा ही नहीं हुई है। सातवें दौर की वार्ता के बाद कृषि मंत्री ने कहा था कि एमएसपी की गारंटी वाले मसले पर अगली बार (आठ जनवरी) की बैठक में चर्चा होगी। इसके लिए भी अध्ययन दल का गठन किया जा सकता है। इसके अलावा केंद्र सरकार की तरफ से भावांतर जैसी योजना लांच की जा सकती है, जिससे किसानों को अपनी उपज को एमएसपी से कम पर नहीं बेचनी पड़ेगी। किसान संगठनों की ओर से वार्ता को लेकर फिलहाल कोई संकेत नहीं दिया गया है।