खाद्य सुरक्षा के लिए बढ़ता ऊसर क्षेत्र बड़ा खतरा, साल 2030 तक डेढ़ करोड़ हेक्टेयर खेतों के ऊसर होने की आशंका
देश में तेजी से बढ़ता ऊसर क्षेत्र खेती के साथ खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकता है। खेती के खराब तौर-तरीकों से ऊसर का प्रसार तेजी से होने लगा है। कृषि वैज्ञानिकों की आशंका है कि हालात यही रहे तो वर्ष 2030 तक ऊसर क्षेत्र बढ़कर दोगुना हो जाएगा। मिट्टी संरक्षण के जरिये ऊसर को खेती योग्य भूमि में तब्दील किया जा सकता है। खेती वाली जमीन को बंजर होने से बचाने की भी सख्त जरूरत है। इसके लिए कृषि क्षेत्र में विविधीकरण की सख्त जरूरत महसूस की जा रही है। कृषि वैज्ञानिकों की सलाह को दरकिनार कर जलवायु आधारित खेती नहीं की गई तो यह खतरा और तेजी से बढ़ सकता है।
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश की 67.3 लाख हेक्टेयर रकबा ऊसर क्षेत्र है। इसमें 13.7 लाख हेक्टेयर का बड़ा हिस्सा अकेले उत्तर प्रदेश में है। केंद्रीय ऊसर अऩुसंधान संस्थान और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने ऊसर भूमि के बढ़ते प्रसार पर अपनी आशंका जताई है। उनके आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2030 तक देश में ऊसर क्षेत्र बढ़कर 1.55 करोड़ हेक्टेयर हो जाएगा। देश में फिलहाल 15.97 करोड़ हेक्टेयर भूमि में खेती होती है। लगभग 87 लाख हेक्टयर भूमि सिंचित है, जो विश्व में सर्वाधिक है।
सॉयल कंजर्वेशन सोसाइटी आफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. सूरजभान ने भूमि की घटती उर्वर क्षमता और नमक की बढ़ती मात्रा को लेकर चिंता जताई हैं। उनका कहना है कि रासायनिक खाद और पेस्टिसाइड के बेहिसाब प्रयोग और सिंचाई के अवैज्ञानिक तरीकों ने मिट्टी की सेहत को सबसे ज्यादा खराब किया है। इसे लेकर विभिन्न कृषि उत्पादक राज्यों में कोई गंभीरता नहीं बरती जा रही है, जो गंभीर चिंता का विषय है। ऊसर भूमि के सुधार के लिए विशेष अभियान चलाने की जरूरत है। उन्होंने सरकार से भूमि उपयोग नियामक प्राधिकरण बनाने की सिफारिश की है ताकि किसानों के साथ भू स्वामी भी प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सजग रहें।
प्राकृतिक संसाधनों के विशेषज्ञ कृषि विज्ञानी डॉक्टर संजय अरोड़ा ने ऊसर भूमि सुधार के लिए एक ‘जिपकिट’ बनाया है, जो भूमि का परीक्षण कर उसमें जिप्सम की सही मात्रा की जांच कर सकता है। फिलहाल जिप्सम की मात्रा बताने वाली प्रक्रिया काफी जटिल और अधिक समय लेने वाली है। अधिकांश प्रयोगशालाओं में इसके परीक्षण की सुविधाओं का अभाव है। ऊसर सुधार के लिए जिपकिट के व्यावसायिक उत्पादन की जरूरत कर किसानों तक पहुंचाने की है।
डाक्टर अरोड़ा के मुताबिक देश में जगह-जगह जल जमाव से भी भूमि में लवणता बढ़ती जा रही है, जिससे जमीन बंजर हो रही है। इस पर अंकुश लगाने की तत्काल जरूरत है। ज्यादा सिंचाई वाली फसलों की लगातार खेती भी भूमि के लिए घातक हो सकती है। पंजाब और हरियाणा के खेतों में वर्षो से सिर्फ धान की खेती से वहां की जमीन को भारी नुकसान हो रहा है।