किसानों से अब फिर होगी बात, गतिरोध खत्म करने के लिए हरसंभव विकल्प अपनाने को तैयार है सरकार
कृषि कानूनों को लेकर बने गतिरोध को खत्म करने की दिशा में कुछ प्रगति होती दिख रही है। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर एक-दो दिन में आंदोलनकारी किसान संगठनों से मुलाकात करेंगे। वार्ता के लिए दरवाजे खुले रखने के साथ ही सरकार सुप्रीम कोर्ट के रुख के अनुरूप समिति गठित करने की भी तैयारी कर रही है। समिति के लिए सदस्यों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इसमें देरी सिर्फ इसलिए हो रही है क्योंकि पिछली सुनवाई में किसान संगठनों की ओर से कोई आया ही नहीं था। संगठनों ने समिति के सदस्यों के लिए नाम नहीं दिए हैं।
बंगाल में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान एक प्रश्न के जवाब में गृह मंत्री शाह ने कहा, ‘मुझे समय की जानकारी नहीं है, लेकिन तोमर कल या परसों में किसान प्रतिनिधियों से उनकी मांगों पर चर्चा के लिए मिलेंगे।’ अब तक सरकार किसानों से पांच दौर की वार्ता कर चुकी है। हालांकि तीनों नए कृषि कानूनों को रद करने की मांग पर अड़े किसानों के रुख के कारण कोई हल नहीं निकल पाया। कृषि सुधार के लिए संसद से पारित तीन कानूनों को लेकर नाराज पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान संगठन आंदोलन कर रहे हैं। वहीं अब देश के कई हिस्सों से किसान संगठन कृषि कानूनों के समर्थन में भी खड़े होने लगे हैं।
सरकार ने पहले भी ऐसा ही प्रस्ताव दिया था
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में जिस तरह समिति बनाने की बात कही है, सरकार ने पहले ऐसा ही प्रस्ताव दिया था। दिसंबर की शुरुआत में सरकार की ओर से किसान संगठनों को एक छोटी समिति बनाने का सुझाव दिया गया था ताकि बातचीत से समाधान निकाला जा सके। सरकार इस समिति में अपनी ओर से मुख्यत: एक दो अधिकारियों के अलावा विशेषज्ञों को ही रखना चाहती है, जो खेती और किसानी को लाभप्रद बनाने के लिए वर्षो से काम करते रहे हैं।
उस समय किसान संगठनों के नेताओं के बीच नहीं बन पाई थी परस्पर सहमति
दूसरी ओर, किसानों के रुख का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सरकार की ओर से लिखित प्रस्तावों पर भी उनका कोई जवाब नहीं आया था। सरकार ने अपनी दूसरी और तीसरी वार्ता के दौरान ही एक विशेषज्ञ समिति के गठन का प्रस्ताव रखा था। उस समय किसान संगठनों के नेताओं के बीच परस्पर सहमति नहीं बन पाई थी। सभी संगठन के नेताओं को समिति में जगह मिलना संभव नहीं था। लिहाजा प्रस्ताव खारिज हो गया। कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने उस समय कहा कि उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। वार्ता में सभी लोग शामिल हो सकते हैं। सरकार के साथ हुई वार्ताओं में कुछ नेताओं का रुख आक्रामक था, जो समाधान की राह में बाधा बने हुए हैं।
जिद पर अड़े हैं किसान संगठन
किसान संगठनों के नेता कृषि कानूनों को रद करने की अपनी जिद पर अड़े हैं। संसद से पारित कृषि सुधार के तीनों कानूनों को रद करने की मांग के साथ उन्होंने अपनी मांग में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी भी जोड़ ली है। सरकार एमएसपी के साथ खाद्यान्न की सरकारी खरीद जारी रखने की मांग के समर्थन में लिखित आश्वासन देने को तैयार है। लेकिन किसान संगठनों की जिद कानूनों को रद करने और एमएसपी की गारंटी के लिए कानून बनाने की है।
समझाने की हुई है कई कोशिश
दिल्ली बार्डर पर कड़ाके की ठंड के बावजूद आंदोलन कर रहे किसान नेताओं को समझाने और उनकी आशंकाओं को दूर करने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कई मंचों से कृषि सुधार के कानूनों के बारे में किसानों को राजनीतिक दलों के बहकावे में आने से बचने की सलाह दी है। उन्होंने यह भी कहा है कि किसानों की हर आशंका का समाधान किया जा सकता है। इसके लिए सरकार तैयार है।