मायावती का बड़ा खेल, उम्मीदवारों की घोषणा से भाजपा हैरान, पश्चिमी यूपी में उलझ गया समीकरण
लोकसभा चुनाव के लिए तारीखों की घोषणा के साथ उत्तर प्रदेश में बसपा ने बड़ी चाल चल दी है. राजनीतिक के कई जानकार इस चुनाव में बसपा को कमतर आंक रहे थे. लेकिन, बहनजी ने सभी कयासों को खारिज करते हुए लोकतंत्र के इस महापर्व में धमाकेदार एंट्री मारी है. उनकी एंट्री से जबर्दस्त चुनावी तैयारी का दावा कर रही भाजपा भी सहम सी गई है. दूसरी तरह इंडिया गठबंधन भी सचेत हो गया है.
दरअसल, इस लोकसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश बसपा और रालोद के लिए प्रयोगशाला सरीखा है. एक तरफ बसपा अकेले चुनावी ताल ठोंककर वेस्ट यूपी में अपनी ताकत परखना चाहती है. वहीं, अजीत सिंह की गैर मौजूदगी में रालोद मुखिया जयंत चौधरी के लिए भी ये चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं हैं. जाट, त्यागी, मुस्लिम, गुर्जर और ओबीसी से प्रत्याशी उतारकर बसपा सुप्रीमो मायावती पश्चिम में 2007 का प्रयोग दोहराती नजर आ रही हैं. वह इसी प्रयोग के सहारे 2007 में अपने दम पर यूपी की सत्ता फतह की थी.
सियासी गलियारे में हलचल
चुनावी पगडंडी पर अब तक उदासीन से दिखाई दे रहे हाथी की चाल ने सियासी गलियारे में हलचल मचा दी है. बसपा ने नई सोशल इंजीनियरिंग के तहत प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर पार्टियों को भी चौंका दिया है. इससे वेस्ट यूपी का चुनावी गणित बुरी तरह उलझा गया है. मेरठ और आसपास की लोकसभा सीटों पर उतारे जा रहे प्रत्याशियों पर गौर करें तो बसपा खास तौर पर भाजपा के कोर वोट बैंक पर ही वार करती हुई दिखाई दे रही है.
2019 के लोकसभा चुनाव में 10 सीटें जीतने के साथ कई सीटों पर दूसरे स्थान पर रही बसपा मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट ही नहीं बल्कि पश्चिम उप्र की अधिकतर लोकसभा सीटों पर भाजपा के कोर वोट बैंक से ही प्रत्याशी तलाश कर मैदान में उतारे जा रही है. भाजपा की घेराबंदी देखकर मुस्लिम वोट बैंक भी बसपा की बाबत सोचने पर मजबूर हो सकता है. इसके मद्देनजर इंडिया गठबंधन के रणनीतिकार भी अलर्ट मोड पर हैं.
बसपा की सोशल इंजीनियरिंग
बसपा की सोशल इंजीनियरिंग की बात करें तो जहां मेरठ से उसने भाजपा के कोर वोट बैंक रहे त्यागी समाज से देवव्रत त्यागी को प्रत्याशी बनाया है. वहीं बिजनौर से जाट समाज के चौ. विजेन्द्र सिंह को मैदान में उतारा है. सहारनपुर में माजिद अली और अमरोहा से मुजाहिद मुस्लिम को प्रत्याशी बनाया गया है. बागपत में गुर्जर, दलित, मुस्लिम, अतिपिछड़ों को साधने के लिए गुर्जर समाज से प्रत्याशी उतारने की तैयारी चल रही है.
मुजफ्फरनगर से पार्टी ने दारा सिंह प्रजापति को मैदान में उतारकर राजनीति का रुख बदल दिया है. पार्टी ने नगीना सांसद रहे गिरीश चंद को बुलंदशहर सीट से मैदान में उतारा है. बसपा कैराना लोकसभा सीट से सैनी को प्रत्याशी बनाने की तैयारी में है. कुल मिलाकर बसपा ने एससी, मुस्लिम, जाट, सैनी, प्रजापति, त्यागी, गुर्जर जाति के प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारकर बड़े वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी कर ली है.
वेस्ट यूपी में रालोद की सियासत की भी अग्निपरीक्षा हो रही है. चौधरी चरण सिंह की विरासत संभालने वाले चौधरी अजित सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं. अजित सिंह की विरासत अब उनके बेटे जयंत चौधरी संभाल रहे हैं. अजित सिंह 2019 के चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के साथ मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़े थे और मामूली अंतर से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. जयंत चौधरी के लिए भी ये चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है