दक्षिण कोरिया के साथ बेहतर संबंध चाहते हैं किम जोंग उन, अमेरिका को लेकर कही ये बात
उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन ने दक्षिण कोरिया के साथ अपने संबंधों को बेहतर करने के संकेत दिए हैं। किम ने अक्टूबर की शुरुआत में दक्षिण कोरिया के साथ रुकी हुई संचार लाइनों को बहाल करने की इच्छा व्यक्त की है। जबकि बातचीत के लिए अमेरिकी प्रस्तावों को उत्तर कोरिया ने केवल इस शत्रुता को छुपाने की कोशिश करार दिया है। उत्तर कोरिया चाहता है कि दक्षिण कोरिया उसे अमेरिका के नेतृत्व वाले आर्थिक प्रतिबंधों से राहत दिलाने में मदद करे। प्योंगयांग ने इस महीने अपनी पहली मिसाइल परिक्षण के बाद सियोल के साथ सशर्त बातचीत की पेशकश की है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उत्तर कोरिया के हालिया परीक्षणों पर संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस के अनुरोध पर गुरुवार को एक आपातकालीन बंद बैठक बुलाई है। बुधवार को देश की संसद में एक भाषण के दौरान किम ने कहा कि एक साल से अधिक समय से निष्क्रिय सीमा पार हाटलाइन की बहाली से दोनों देशों के बीच शांति स्थापित की जा सकती है।
इसके साथ ही किम ने दक्षिण कोरिया पर आरोप लगाया है कि वह दोनों देशों के बीच स्वतंत्र रूप से मामलों को हल करने के लिए प्रतिबद्ध होने के बजाय अमेरिका से अंतरराष्ट्रीय सहयोग मांग रहा है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तर कोरिया दक्षिण कोरिया पर अपने बैलिस्टिक मिसाइल परीक्षणों की आलोचना को कम करने के लिए दबाव डाल रहा है। दक्षिण कोरिया ने जवाब देते हुए कहा है कि वह लंबित मुद्दों पर चर्चा करने और उन्हें हल करने के लिए आवश्यक हाटलाइन की बहाली की तैयारी करेगा।
उत्तर कोरिया ने लंबे समय से उस पर अमेरिका के नेतृत्व वाले आर्थिक प्रतिबंधों और वाशिंगटन और सियोल के बीच नियमित सैन्य अभ्यास को अमेरिका की शत्रुतापूर्ण नीतियों का प्रमाण बताया है। किम जोंग उन ने कहा है कि उत्तर कोरिया अपने परमाणु शस्त्रागार को मजबूत करेगा और वाशिंगटन के साथ परमाणु कूटनीति फिर से तब तक शुरू नहीं करेगा जब तक कि इस तरह की शत्रुतापूर्ण नीतियों को वापस नहीं ले लेता।
उत्तर कोरिया ने बुधवार को दावा किया था कि उसने एक नई हाइपरसोनिक मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। इससे पहले उसने इस महीने एक नई क्रूज मिसाइल और एक बैलिस्टिक मिसाइल भी लान्च की थी। दोनों ही हथियार दक्षिण कोरिया और जापान में लक्ष्य पर हमला करने के लिए परमाणु बम ले जाने मे सक्षम हैं। बता दें कि दोनों प्रमुख अमेरिकी सहयोगी देशों में कुल 80,000 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं।