खत्म होगा टीके का संकट, जुलाई से देश में ही होगा रूस की स्पूतनिक-वी का उत्पादन
कोरोना की भयावह दूसरी लहर के बीच लोग जल्द से जल्द टीका लगवा लेना चाहते हैं। लेकिन, टीके का उत्पादन कम है। देश में निर्मित दो टीके अभी लगाए जा रहे हैं, जबकि आयातित स्पूतनिक वी टीके को भी जल्द कार्यक्रम में शामिल करने के प्रयास किए जा रहे हैं। केंद्र सरकार ने टीकाकरण के लिए मिशन कोविड सुरक्षा शुरू किया है, जिसकी जिम्मेदारी संभाल रही हैं जैव प्रौद्यौगिकी विभाग की सचिव डॉ. रेनु स्वरूप। उन्होंने ‘हिन्दुस्तान’ के ब्यूरो चीफ मदन जैड़ा से एक ई-मेल साक्षात्कार में टीकों की उपलब्धता बढ़ाने और नए टीकों को लेकर कई जानकारियां साझा कीं।
टीके का उत्पादन बढ़ाने के लिए और कंपनियों को मौका क्यों नहीं दिया जा रहा?
कोवैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने के लिए निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के क्षमतावान टीका निर्माताओं की पहचान की गई है। अब भारत बायोटैक की तकनीक इन निर्माताओं को हस्तांतरित करने को लेकर बातचीत की प्रक्रिया चल रही है। जल्दी ही योग्य निर्माताओं को तकनीक दी जाएगी।
स्पूतनिक वी टीके को मंजूरी दी गई है। आयात शुरू हो गया है, लेकिन देश में इसका उत्पादन कब शुरू होगा?
टीका देश में पहुंचना शुरू हो चुका है। एक खेप आ चुकी है। जल्द ही इसे भी टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल कर लगाना शुरू किया जाएगा। इस महीने के अंत तक 30 लाख और स्पूतनिक टीके की खुराक भारत पहुंचेंगी। साथ ही देश में इस टीके का उत्पादन शुरू करने के लिए रेड्डी लेबोरेटरी के अलावा पांच अन्य कंपनियों के साथ बातचीत चल रही है। इनमें हेटेरो बॉयोफॉर्मा, विरचोव बॉयोटैक, स्टेलिस बॉयोफॉर्मा, ग्लैंड बॉयोफॉर्मा तथा पैनाशिया बॉयोटैक शामिल हैं। हमारी कोशिश है कि जुलाई से देश में निर्मित स्पूतनिक वी वैक्सीन मिलनी शुरू हो जाएगी।
अन्य टीकों की क्या स्थिति है?
तीन टीकों को आपात स्थिति की मंजूरी मिल चुकी है। पांच टीके क्लीनिकल ट्रायल के विभिन्न स्टेज में हैं। इनमें से जायडस कैडिला की डीएनए वैक्सीन और बॉयोलॉजिकल ई की रिकांबिनेंट वैक्सीन तीसरे चरण के परीक्षण से गुजर रही है। जिनोवा बॉयोफॉर्मास्युटिक्लस की एमआरएनए वैक्सीन तथा भारत बायोटैक की नेजल वैक्सीन पहले चरण के क्लीनिकल ट्रायल में हैं। इसके अलावा सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने नोवावैक्स द्वारा विकसित रिकांबिनेंट नेनोपार्टिकल वैक्सीन के तीसरे चरण के ब्रीजिंग क्लीनिकल ट्रायल आरंभ कर दिए हैं। उम्मीद है कि ये टीके भी जल्द उपलब्ध होंगे।
कोरोना के नए वैरिएंट के मद्देनजर क्या कोविशील्ड और कोवैक्सीन को अपग्रेड करने की कोई योजना है ?
जो नए वैरिएंट सक्रिए पाए गए हैं, उनकी नियमित रूप से जीनोम सिक्वेंसिंग की जा रही है। इंडियन सार्स कोव-2 जीनोमिक कंसोर्टियम के तहत डीबीटी-आईएलएस, डीबीटी-आरसीबी, सीएसआईआर-सीसीएमबी प्रयोगशालाओं द्वारा यह कार्य किया जा रहा है। नए वैरिएंट पर टीके के असर को लेकर भी अध्ययन किए गए हैं तथा आरंभिक नतीजे बताते हैं कि दोनों टीके नए वैरिएंट के खिलाफ कारगर हैं। इस दिशा में अभी विस्तृत अध्ययन जारी हैं, जिससे यह पता चलेगा कि नए वैरिएंट के खिलाफ उनकी प्रभावकारिता कितनी है।
डब्ल्यूटीओ के कोरोना टीकों से पेटेंट हटाने की संभावना है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं हैं कि कंपनियां तकनीक हस्तांतरित करने को तैयार होंगी या नहीं। ऐसी स्थिति में क्या हमारी कंपनियां एमआरएनए जैसे टीकों को नए सिरे से तैयार करने में सक्षम हो पाएंगी ?
क्यों नहीं, जिनोवा बॉयोफार्मा पहले से एमआरएनए वैक्सीन तैयार कर चुकी है। इसके परीक्षण चल रहे हैं। गैर मानवीय परीक्षणों में टीके से शानदार प्रतिरोधक क्षमता पैदा होती दिख रही है। इस टीके को 2-8 डिग्री तापमान पर स्टोर किया जा सकता है। इसके पहले चरण के परीक्षण चल रहे हैं, जो जून के मध्य तक पूरे हो जाएंगे। बाकी परीक्षण पूरे होने के बाद जिनोवा बायोफार्मास्युटिकल्स सितंबर से एक करोड़ डोज प्रतिमाह तैयार करने की क्षमता विकसित कर चुकी है।
बच्चों का टीका कब आएगा?
बच्चों का प्रतिरोधक तंत्र अलग तरीके से कार्य करता है तथा वयस्कों की तुलना में यह मजबूती के साथ प्रतिक्रिया देता है। इसलिए बच्चों के लिए टीके की खुराक का आकार अलग होता है। वैश्विक स्तर पर फाइजर और मॉर्डना ने अपने टीकों के 12-18 वर्ष और छह महीने से 11 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों के लिए परीक्षण आरंभ कर दिए हैं। इस सिलसिले में देश में भारत बॉयोटेक को कोवैक्सीन के बच्चों में क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति प्रदान कर दी है। यह परीक्षण 2-18 साल की आयु के बच्चों पर किए जाएंगे।
कोरोना की दवाएं बनाने की दिशा में क्या प्रगति है?
जैव प्रौद्यौगिकी विभाग ने दवाएं बनाने की दिशा में भी कई पहल की हैं। औषधीय एवं सुगंधित पौधों से निर्मित एक दवा एक्यूसीएच के दूसरे चरण के मानवीय परीक्षण चल रहे हैं। इसी प्रकार ह्यूमन मोनोक्लोनल एंटीबाडीज आधारित एक दवा को लेकर अध्ययन किए जा रहे हैं। डीबीटी द्वारा समर्थित एक दवा वीराफिन को हाल में ही सीमित आपात इस्तेमाल की मंजूरी मिली है।
नाक से लिया जाने वाला टीका कब आएगा?
यह टीका भारत बायोटैक ने वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर तैयार किया है। यह एडिनोवायरस वैक्टर आधारित टीका है। यह नाक से दिया जाने वाला एकल खुराक वाला टीका है। प्री क्लीनिकल अध्ययन पूरे हो चुके हैं। मार्च में इसे पहले चरण के क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति दी गई थी। इन परीक्षणों के नतीजों के आधार पर अब दूसरे एवं तीसरे चरण के परीक्षणों की अनुमति दी जाएगी। संभावना है कि इस महीने के अंत या अगले महीने यह परीक्षण शुरू हो जाएंगे।