पुरी के जगन्नाथ मंदिर ‘अवैध निर्माण’ के खिलाफ दायर याचिकाएं खारिज
उच्चतम न्यायालय ने पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर परिसर में कथित अवैध निर्माण के खिलाफ दायर याचिकाओं को शुक्रवार को खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की अवकाशकालीन पीठ ने याचिकाओं को खारिज करते हुए शीर्ष अदालत का समय बर्बाद करने पर एक लाख रुपये जमा करने का आदेश याचिकाकर्ताओं को दिया।
शीर्ष अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि भारत के पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने उच्च न्यायालय को स्पष्ट रूप से बताया है कि तीर्थयात्रियों की सुविधाओं से संबंधित कार्यों के कारण विरासत स्थल वह कोई नुकसान नहीं हुआ है। बावजूद इसके, इस मुद्दे पर ‘हाय तौबा मचाया’. जा रहा है। इस मामले की शीघ्र सुनवाई के बार-बार शीर्ष अदालत के समक्ष गुहार की गई थी। इस प्रकार अदालत का समय बर्बाद किया।
पीठ ने गुरुवार को याचिकाकर्ताओं और ओडिशा सरकार की विस्तृत दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं – अर्धेंदु कुमार दास और अन्य की ओर से वरिष्ठ वकील महालक्ष्मी पवानी ने दलीलें पेश करते हुए कहा था कि मंदिर के निषिद्ध क्षेत्र में कोई अवैध निर्माण नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (एनएमए) से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) प्राप्त कर और निर्माण कार्य किया था। उन्होंने दावा किया था कि विरासत स्थल को अपूरणीय क्षति हुई है।
ओडिशा सरकार का पक्ष रख रहे इसके महाधिवक्ता अशोक कुमार पारिजा ने कहा था कि राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (एनएमए) प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल तथा अवशेष अधिनियम के तहत तीर्थयात्रियों एवं भक्तों के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए परियोजना की अनुमति देने के लिए अधिकृत प्राधिकरण है। उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार के संस्कृति विभाग के निदेशक सक्षम अधिकारी हैं और उन्होंने ही अनुमति दी थी।
महाधिवक्ता पारिजा ने यह भी कहा था कि सरकार ने मंदिर में सुविधाएं और सौंदर्यीकरण करने की योजना बनाई है।
उन्होंने यह भी कहा था कि हर रोज 60,000 लोग मंदिर में आते हैं और यहां शौचालय समेत अन्य सुविधाएं विकसित करने की जरूरत है।
एक अन्य वकील ने मंदिर में अतीत की भगदड़ की घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा था कि वार्षिक रथ यात्रा के दौरान
लगभग 15-20 लाख लोग मंदिर में आते हैं। मंदिर में सुविधाएं प्रदान करने की आवश्यकता थी।
याचिकाकर्ताओं ने नौ मई के उच्च न्यायालय के आदेश की वैधता को शीर्ष न्यायालय में चुनौती दी थी।
गौरतलब है कि 800 करोड़ रुपये की जगन्नाथ मंदिर कॉरिडोर परियोजना 2023 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है