22 November, 2024 (Friday)

दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में भाजपा अध्‍यक्ष जेपी नड्डा बोले- आतंकियों के साथ खड़े होने वालों की नीयत बताना हमारा धर्म

पूरे देश की नजर अब सिर्फ उत्तर प्रदेश पर टिकी है। चुनाव अब पूर्वाचल के उस मुहाने पर पहुंच चुका है जहां जातिगत समीकरण के प्रयोग की सफलता-असफलता पर चर्चा तेज है। चुनाव में स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ आतंकवाद भी शामिल हो गया है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा कहते हैं- जब वह जिन्ना और 1947 की बात करेंगे तो भाजपा उनकी नीयत तो जनता को बताएगी ही। बहुत शांत और सरल स्वभाव के नड्डा आक्रामक होते हुए कहते हैं कि अखिलेश क्यों नहीं कहते कि सिर्फ कानून के लिहाज से काम होगा, आतंकियों पर रहम नहीं होगा। युवाओं को लेकर पार्टी की भविष्य की रणनीति, विरोधी मोर्चे की कवायद, बिहार में खटपट की अटकलों जैसे कई विषयों पर दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख आशुतोष झा ने उनसे बातचीत की। पेश हैं इसके प्रमुख अंश-

सवाल- उत्तर प्रदेश चुनाव का चार चरण पूरा हो चुका है और दोनों ओर से सरकार बनाने के दावे हो रहे हैं। आपके दावे का आधार क्या है?

जवाब- पहले तो मैं यह कहूंगा कि दूसरे पक्ष की ओर से जो दावा हो रहा है वह वैसा ही जैसा 2017 और 2019 में भी किया गया था। अखिलेश यादव हर बार अलग अलग पार्टी के साथ जमीन बनाने की कोशिश करते हैं और फेल होते हैं। मायावती जी के साथ आए, कांग्रेस के साथ आए, इस बार रालोद के साथ खड़े हैं जिनका स्थान भी सीमित है, पार्टी भी सीमित है और क्षेत्र भी सीमित है। गणित बदलने की कोशिश होती है, लेकिन केमिस्ट्री नहीं बनती है। जो गरीब है जो वंचित रहा है वह अपने वोट को लेकर बहुत सतर्क है। यह मानकर चलिए कि अब वोटों के ठेकेदार खत्म हो गए हैं। वोटर अपनी सुरक्षा के प्रति सजग हो गया है। यह चुनाव आम लोगों, गरीबों के सशक्तीकरण के लिए है और इस कारण से वोटरों का रुझान भाजपा की ओर है। लोग प्रधानमंत्री के हाथों में देश को सुरक्षित मानते हैं, मोदी जी ने जो योजनाएं बनाई उसे योगी जी ने सौ फीसद गरीबों तक पहुंचाया। आंकड़े गिनाने को बहुत कुछ है और यह जनता ही कर देगी। यही प्रो इनकम्बैंसी बनकर उभरा है। सबकी केमिस्ट्री बन रही है मोदी जी के साथ, सबकी केमिस्ट्री बन रही है योगी जी के साथ। यानी हम दावा नहीं कर रहे हैं, बल्कि विश्र्वास के साथ कह रहे हैं।

सवाल- आपने कहा कि लोगों के आने या गठबंधन से फर्क नहीं पड़ता। लेकिन यही रणनीति तो आप भी अपनाते रहे हैं। जो लोग पिछले चुनाव से पहले आपके साथ आए थे अब वही दूसरे पाले में हैं। खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुछ तो परेशानी होगी?

जवाब- जो लोग गए, उनका शोर दो दिन में समाप्त हो गया और आज अपनी सीटें बचाते फिर रहे हैं। जब तक वो भाजपा के साथ थे तब तक ताकतवर थे। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि उत्तर प्रदेश की जनता अपने हितों को रूप देने के लिए माध्यम भाजपा को मानती है। जैसे ही आप उससे हटे कि आपके लिए सीट बचाने की जद्दोजहद शुरू हो गई। मैं बार-बार केमिस्ट्री की बात क्यों कह रहा हूं.। ओम प्रकाश राजभर चले गए, वह तो 2019 में चले गए थे, लेकिन क्या हुआ उनका। जो हमारे साथ जुड़ता है वह मजबूत होता है।

सवाल- प्रधानमंत्री मोदी अंतिम चरण के चुनाव से पहले तीन दिन वाराणसी में रुकेंगे और इसे अलग अलग तरीके से देखा जा रहा है। आप कैसे देखते हैं?

जवाब- पीएम मोदी देश और दुनिया के लिए एक शख्सियत हैं। प्रधानमंत्री के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए वह एक सांसद की जिम्मेदारी भी निभाते हैं। काशी की जनता भी इसका अहसास करती है..दो बजे रात को अगर वह निरीक्षण के लिए निकलते हैं तो इसीलिए न कि वह खुद देख सकें कि उनके संसदीय क्षेत्र में क्या हो रहा है।

सवाल- आपने जीत के जितने कारण गिनाए वह सब विकास से संबंधित हैं, लेकिन अक्सर देखा जाता है कि चुनाव के नजदीक आते-आते आतंकवाद का मुद्दा भी उछल जाता है। ऐसा क्यों होता है?

जवाब- यह तो आप दूसरे पक्ष से पूछिए. भई, जिन्ना शब्द कौन लेकर आया, किसने उखाड़ीं 1947 की बातों को। यह गलती से निकला शब्द नहीं था, लेकिन जब निकला तो हम उनकी नीयत को बताएंगे, उसे नियति तक तो लेकर जाएंगे ही। आप अगर कहते हैं कि किसी जाति धर्म को लोगों को जेल से छुड़ाउंगा तो देशहित और राष्ट्रहित के लिए भाजपा बताएगी या नहीं कि जिसे छुड़ाने की बात हो रही है वह देशद्रोही है, आतंकी है। सत्ता पाने के लिए आपको देशद्रोहियों का साथ देने में कतई हिचक नहीं है। ऐसी पार्टियों को हम तो केवल बेनकाब कर रहे हैं। जो लोग जेल में हैं वह उन्हें साहब दिखते हैं तो समझ सकते हैं कि समाज के हितों के साथ कितना समझौता होगा। गोरखपुर ब्लास्ट, कचहरी ब्लास्ट, श्रमजीवी ब्लास्ट, संकटमोचक ब्लास्ट..ये सब तो तब हुआ जब उनकी सरकारें थीं। 2012 में जब अखिलेश मुख्यमंत्री बने थे तो इनके केस वापस लिए थे। क्यों नहीं कहते हैं कि आतंकियों को बिल्कुल भी संरक्षण नहीं देंगे, लेकिन वह कहते हैं-10 तारीख के बाद देखेंगे, यह शब्दावली क्या बताती है। हम तो केवल उन्हें बेनकाब करते हैं और लोगों को परेशानी होने लगती है।

सवाल- लेकिन ठीक चुनाव से पहले ही कन्नौज मे इनकम टैक्स की कार्रवाई होती है, पंजाब में चुनाव से पहले ही मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के रिश्तेदार के घर छापे पड़ते हैं और अब महाराष्ट्र में। यह तो विपक्षी दलों की ओर से नहीं हो रहा है?

जवाब- यह कोई नहीं कर रहा है, यह स्वतंत्र एजेंसियों की ओर से हो रहा है। इनका काम किसी समय से बंधा नहीं होता है। मान लीजिए कि ईडी ने केस लगाया, उसके बाद न्यायिक रिमांड मिला या नहीं मिला। यह मुझे पता नहीं कि एजेंसियों को क्या इनपुट मिलता है और कैसे कार्रवाई करती हैं, लेकिन यह तो संभव है कि जब इन लोगों की हरकतें बढ़ती हैं तो एजेंसियों की निगाह में आते होंगे।

सवाल- अमेठी और रायबरेली को लेकर कोई खास रणनीति.।

जवाब- हर क्षेत्र को लेकर हमारी विशेष रणनीति होती है। करहल भी इससे बचा नहीं था और अखिलेश जी को अपने पूज्य पिताजी को वहां लाना पड़ा, इससे समझ सकते हैं। अमेठी और रायबरेली विशेष लोगों से जुड़ा रहा था इसीलिए आपकी नजरों में विशेष होगा, हमारे लिए हर क्षेत्र बराबर है।

सवाल- अकाली दल भाजपा का पुराना साथी है। क्या नतीजों के बाद फिर से रिश्ता बन सकता है।

जवाब- हमने खुद को नुकसान में रखते हुए भी अकाली दल से रिश्ता निभाया है। हमारा सिद्धांत रहा है कि हम किसी का साथ नहीं छोड़ते हैं। वे हमें छोड़कर चले गए। लेकिन यह सच्चाई है कि अब भाजपा विस्तार करना चाहती है। पहली बार हम 65 से ज्यादा सीटों पर लडे़ हैं। राष्ट्रवादी ताकत मजबूत हो, इसलिए हम फिर से इसे सीमित नहीं करना चाहते हैं। मुझे ऐसी कोई उम्मीद नहीं दिखती है, लेकिन आखिरी फैसला तो संसदीय बोर्ड करता है। मैंने आपको अपनी प्राथमिकता बताई कि वह है विस्तार।

सवाल- उत्तराखंड में तो चुनाव खत्म हो चुका है और कांग्रेस ज्यादा उत्साहित दिख रही है। क्या अर्थ निकाला जाए?

जवाब- हम हमेशा शांत रहते हैं, हमारे नतीजे बोलते हैं, वे लोग हमेशा अशांत रहते हैं, नतीजे उनको तकलीफ में डालते हैं। इस बार भी यही होगा। पिछली बार तो आपने देखा था कि हरीश रावत जी दो जगह से लड़े थे और हार गए थे।

सवाल- तो क्या माना जाए कि इस बार अगर उत्तराखंड में आपकी सरकार बनी तो मुख्यमंत्री भी स्थायी होगा?

जवाब- आप पिछले दिनों में बदले गए मुख्यमंत्री के बारे में बोल रहे हैं शायद..लेकिन यह समझ लीजिए कि भाजपा गतिशील पार्टी है। समय और परिस्थिति देखकर हम फैसले लेते हैं, युवा चेहरा भी लाते हैं। बदलाव का अर्थ अस्थिरता नहीं होता है। मैं आपको उदाहरण देता हूं, दो जगह मुख्यमंत्री बदले गए थे-पंजाब में बदलाव हुआ और पूरी कांग्रेस पार्टी अस्थिर हो गई, हमने उत्तराखंड में तीन चेहरे बदले लेकिन पार्टी स्थिर रही। फैसलों के कई आयाम होते हैं।

सवाल- एक नया प्रयोग शुरू हुआ है भाजपा में, गोवा में आपने युवा मुख्यमंत्री दिया, गुजरात में पहली बार चुनकर आए व्यक्ति को मुख्यमंत्री बना दिया और उत्तराखंड में भी तुलनात्मक रूप मे युवा चेहरा दिया। क्या यही परंपरा बनने वाली है।

जवाब- यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। मैं आपको अंदर की बात बताऊं, हमारे प्रधानमंत्री इतने सजग हैं कि जब कभी संगठन का कोई मुद्दा उनके पास रखा जाता है या फिर चुनाव समिति की बैठक होती है तो उनका पहला सवाल होता है-युवा कितने हैं, 40 से कम के कितने हैं, महिलाएं कितनी हैं, पिछड़े कितने हैं, दलित भाइयों का नंबर क्या है, नए चेहरे कितने हैं, इंजीनियरिंग, डाक्टरी, तकनीकी क्षेत्र से कोई है या नहीं..। सबका साथ सबका विकास हम केवल बोलते नहीं है, भाजपा तो संगठन में भी इसी मंत्र के साथ चलती है। वरना क्या संभव था कि 2010 में जो लोग संगठन में सचिव के रूप में थे वह आज केंद्रीय मंत्री हैं, जो लोग विधानसभा में 2010 में टिकट के प्रार्थी थे वह आज मुख्यमंत्री हैं। यह सब इसलिए संभव हो रहा है, क्योंकि भाजपा गतिशील है, भाजपा सही मायने में लोकतांत्रिक हैं और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में युवाओं के साथ-साथ हर वर्ग का भरोसा केवल भाजपा है। जब मैंने उत्तर प्रदेश समेत दूसरे सभी राज्यों में जीत का भरोसा जताया तो उसकी जड़ नीचे हैं। युवाओं का जुड़ाव क्यों भाजपा से है..इसलिए यहां उन्हें देशहित, समाज हित के लिए काम करने का अवसर मिलता है। आज हमारा कोई भी जिलाध्यक्ष 45 वर्ष से ऊपर नहीं है, इसका यह अर्थ नहीं कि जो 50-55 के हैं उन्हें अवसर नहीं है। अनुभव और जोश के साथ सब मिलकर काम करते हैं, मोदी जी लगातार इसे बढ़ाते हैं।

सवाल- राजग की एक सरकार बिहार में है लेकिन वहां भाजपा और जदयू नेताओं के बीच टकराव की स्थिति दिखती है। कई सवाल खड़े हो रहे हैं।

जवाब- कुछ लोग हैं जो थोड़ी बयानबाजी करते हैं लेकिन बिहार में राजग के अंदर बहुत सामंजस्य है। नीतीश बाबू के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं। एमएलसी के चुनाव होने वाले हैं और हम दोनों दलों के बीच पांच दस मिनट में पूरी बात हो गई। यानी समझौते के जो मूल कारण होते हैं जहां समस्या आ सकती है अगर वह पांच दस मिनट में सुलझ जाएं तो फिर इसे समस्या कैसे कहेंगे।

सवाल- एक बारगी भाजपा के खिलाफ खड़े होने वाले दलों की संख्या बढ़ने लगी है। टीआरएस जैसा दल जो संसद में कई बार भाजपा के साथ खड़ा था अब वह भी विरोधी मोर्चा बनाने लगा है। कितनी बड़ी चुनौती के रूप में देखते हैं।

जवाब- कोई चुनौती नहीं है। देश में दो धाराएं हैं, एक वह जो राष्ट्र को सामने रखकर चलता है और दूसरा वह जो स्वार्थ को। जनता तो सब कुछ समझती है। कुर्सी माध्यम है, कुर्सी लक्ष्य नहीं। जो लोग कुर्सी के लिए हमारे साथ चिपकते हैं वह देर सबेर जाएंगे ही। शिवसेना तो हमारे साथ मिलकर लड़ी लेकिन कुर्सी बीच में आ गई और आज ऐसी जगह फंस गए कि उनकी विचराधारा ही अधर में अटक गई।

सवाल- भाजपा अध्यक्ष के रूप में आपके दो साल पूरे हो चुके हैं। कितना चुनौतीपूर्ण या आसान रहा।

जवाब- हर अध्यक्ष के लिए कार्यकाल चुनौतीपूर्ण रहता ही है। अमित (शाह) भाई के कार्यकाल में नए राज्यों में सरकार बनाने की चुनौती थी जिसे उन्होंने पूरा किया। मैं आया हूं कि राज्यों को संभालकर आगे बढ़ते हुए नए राज्यों में प्रवेश करने का प्रयास हो रहा है। यह जरूर है कि एक महामारी आई जिसके कारण संगठन के कार्य में भी परेशानी खड़ी होने लगी थी। लेकिन आपदा के काल में नई राह निकली। भाजपा का सामाजिक पक्ष सामने आया। सेवा ही संगठन के रूप में भाजपा जनता के साथ खड़ी रही। जब सारी पार्टियां जब क्वारंटाइन हो गईं तब भाजपा ने करोड़ों लोगों को खाना पहुंचाया, दवाएं पहुंचाईं। पार्टी भी डिजिटल हुई और संवाद तेज हुआ। पहले राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक तीन महीने में एक बार होती थी अब हर पंद्रह दिन में होती है। यह क्रम नीचे तक चलता है। पांडिचेरी से पहली बार भाजपा का सांसद आया है। लद्दाख से लेकर सुदूर दक्षिण तक भाजपा ने म्यूनिसिपल कारपोरेशन का चुनाव जीता, उपचुनावों में साठ फीसद सफलता रही। यह पूरी पार्टी की सफलता है, क्योंकि इसमें पार्टी के सभी नेताओं की भूमिका रही है।

सवाल- संसदीय बोर्ड भाजपा की शीर्ष नीतिगत समिति है। उसमें विस्तार क्यों नहीं हुआ।

जवाब- इसके कारण हमारा कोई काम रुका नहीं है। जब जरूरत होगी तो वह भी होगा, लेकिन अभी भी जो फैसले होते हैं वह पूरी चर्चा के बाद ही होते हैं।

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