केस दायर करने में समयसीमा की छूट बहाल करने पर सोमवार को सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सोमवार को सुनवाई करने के लिए राजी हो गया है। एसोसिएशन ने देशभर में कोरोना के बढ़ते मामलों के मद्देनजर अदालतों में मामले दायर करने की समयसीमा में छूट को बहाल करने की मांग की है।
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने एसोसिएशन के प्रेसीडेंट शिवाजी जाधव की उन दलीलों पर संज्ञान लिया कि महामारी की बिगड़ती स्थिति की वजह से समयसीमा में छूट की फिर से जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट परिसर में कोर्ट रूम के बजाय प्रधान न्यायाधीश के आधिकारिक आवास पर बैठी पीठ ने कहा, ‘हम इसे विचार के लिए सोमवार को सूचीबद्ध करेंगे।’
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना के अचानक बढ़ते मामलों पर संज्ञान लिया था और शुक्रवार से सभी मामलों पर वर्चुअल माध्यम से सुनवाई करने का फैसला किया था जब सभी पीठें शीर्ष अदालत में कोर्ट रूम के बजाय आवासीय कार्यालयों में बैठेंगी। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन ने अपनी याचिका में अनुरोध किया है कि 23 मार्च, 2020 और 27 अप्रैल, 2021 के फैसलों को बहाल किया जाए। कोरोना की पहली और दूसरी लहर के मद्देनजर इन फैसलों के जरिये शीर्ष अदालत ने मामले दायर करने की वैधानिक समयसीमा में छूट दी थी।
सिर्फ समान इरादा होने से आइपीसी की धारा-34 स्वत: लागू नहीं होती : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि केवल एक समान इरादे के आधार पर किसी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा-34 लागू नहीं हो सकती जब तक आगे किसी गतिविधि को अंजाम न दिया गया हो। इस प्रविधान के तहत किसी को आरोपित करने से पहले अदालत को सुबूतों का विश्लेषण और मूल्यांकन करना होगा।आइपीसी की धारा-34 के अनुसार जब कई लोग समान इरादे से कोई आपराधिक कृत्य करते हैं तो उनमें से प्रत्येक इस कृत्य के लिए उसी तरह जवाबदेह होगा जैसे उसने अकेले इस काम को अंजाम दिया हो।
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंद्रेश की पीठ ने कहा कि कुछ मामले ऐसे हो सकते हैं जिनमें कोई व्यक्ति अपराध को अंजाम देने के समान इरादे में सक्रिय सहभागी होने के बावजूद बाद में इससे पीछे हट सकता है। पीठ ने कहा कि समान इरादा होने की बात को साबित करना जाहिर तौर पर अभियोजन पक्ष की जिम्मेदारी है।शीर्ष अदालत ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के 2019 के एक फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर अपना फैसला सुनाया।
हाई कोर्ट ने निचली अदालत से सहमति जताई थी जिसने अप्रैल, 2011 में एक आपराधिक मामले में चार आरोपितों को दोषी ठहराया था और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इनमें से दो ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी और शीर्ष कोर्ट ने उनके खिलाफ हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।