बैंकों ने एबीजी शिपयार्ड की धोखाधड़ी औसत से कम समय में पकड़ी : सीतारमण
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 22,842 करोड़ रुपये की एबीजी शिपयार्ड बैंक धोखाधड़ी में पहली शिकायत दर्ज कराने में लगे पांच साल का बचाव किया है। उन्होंने कहा कि यह धोखाधड़ी औसत से कम समय में पकड़ी गई और इस मामले में कार्रवाई चल रही है।
वित्त मंत्री ने कहा कि एबीजी शिपयार्ड को पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के कार्यकाल में कर्ज दिया गया था और कंपनी का खाता भी उसी के कार्यकाल में 30 नवंबर, 2013 को एनपीए (फंसा हुआ कर्ज) हुआ था। सभी कर्जदाता बैंकों द्वारा मार्च 2014 में कर्ज का पुनर्गठन किया गया था, लेकिन इससे कुछ फायदा नहीं हो सका।
वित्त मंत्री ने सोमवार को भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड के निदेशकों के साथ बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘इस मामले में बैंकों को श्रेय मिलेगा। उन्होंने इस तरह की धोखाधड़ी को पकड़ने के लिए औसत से कम समय लिया।’ उन्होंने कहा कि आमतौर पर बैंक इस तरह के मामलों को पकड़ने में 52 से 56 माह का समय लेते हैं और उसके बाद आगे की कार्रवाई करते हैं।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) ने देश के सबसे बड़े बैंक धोखाधड़ी मामले में एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड और उसके पूर्व चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक ऋषि कमलेश अग्रवाल सहित अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया है। यह मामला आइसीआइसीआई बैंक की अगुवाई में करीब दो दर्जन बैंकों के गठजोड़ के साथ धोखाधड़ी के लिए दर्ज किया गया है।
एबीजी शिपयार्ड को ज्यादातर कर्ज 2006 से 2009 के बीच मिला
एबीजी शिपयार्ड कंपनी को 2013 से पहले ही कर्ज की ज्यादातर रकम मिल गई थी। बैंक घोखाधड़ी रोकने के लिए मौजूदा सरकार ने 2014 में नीति बनाई थी, जिसमें संदिग्ध खातों के फारेंसिक आडिट का प्रविधान किया गया था। उसके अगले साल से यह प्रक्रिया शुरू हो गई थी जो अभी भी जारी है। नई नीति के तहत 50 करोड़ से अधिक बैंक के एनपीए खाते के फोरेंसिक आडिट को अनिवार्य बनाया गया था और इसके लिए सीएमडी को जवाबदेह बनाया गया था।
सरकारी सूत्रों के मुताबिक कंपनी के एनपीए हुए खातों में ज्यादातर कर्ज की रकम 2006 से 2009 के बीच में डाली गई थी। बैंक की नीति के मुताबिक खाता के एनपीए घोषित किए जाने से तीन साल पहले तक के खातों की फोरेंसिक जांच कराई जा सकती है। इसलिए मौजूदा मामले में 2012 से 2017 के बीच का फोरेंसिक आडिट कराया गया था। हालांकि, जांच के दौरान पाया गया कि कंपनी की तरफ से ज्यादातर गड़बडि़यां 2006-09 के बीच की गईं, जिसकी जांच की जा रही है। सूत्रों ने बताया कि वास्तविक धोखाधड़ी 2012 से पहले की है, लेकिन फोरेंसिक आडिट 2012 से 2017 के बीच की हुई है, इसलिए केस में इस अवधि का उल्लेख किया गया है।