दिवाली से पहले PM मोदी की अग्नि परीक्षा, पास हुए तो पूरे 5 साल सरपट दौडे़गी NDA सरकार
लोकसभा चुनाव में भाजपा बहुमत से दूर रह गई. इस कारण इस बार केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बन रही है. इस एनडीए में दो ऐसे दल टीडीपी और जेडीयू हैं जिनकी विश्वसनीयता सवालों के घेरे में रही है. सरकार बनाने में उनकी भूमिका सबसे अहम है. राजनीति को समझने वाले लोग जानते हैं कि मोदी सरकार को समर्थन देने के बदले ये अपनी ‘कीमत’ वसूलेंगे. सरकार के शपथ ग्रहण से पहले मीडिया में इनकी ओर से कई अहम मंत्रालयों की मांग की खबरें आने लगी हैं.
खैर, हम आज इसकी चर्चा नहीं कर रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि नरेंद्र मोदी ने अपने कुशल नेतृत्व क्षमता से मौजूदा चुनौती को पार कर लिया है. केंद्र में तीसरी बार मोदी सरकार बनने जा रही है. लेकिन, इस सरकार की असली परीक्षा पांच-छह महीने के भीतर होगी.
दरअसल, इस चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान राजनीतिक रूप से देश के दूसरे सबसे सूबे महाराष्ट्र और फिर हरियाणा में हुआ है. अगर इन दोनों राज्यों में भाजपा ने 2019 का प्रदर्शन दोहरा दिया होता तो आज वह अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बना लेती. अब ये सभी बीती बातें हो चुकी हैं. सीधे मुद्दे पर आते हैं.
दिवाली से पहले विधानसभा चुनाव
इस साल दिवाली से पहले तीन राज्यों महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इस साल 31 अक्टूबर को दिवाली है. हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल अक्टूबर-नवंबर में खत्म हो रहा है. इन तीन में से दो राज्यों हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा ने लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन किया है. महाराष्ट्र की 48 सीटों में से उसे केवल नौ मिली हैं जबकि हरियाणा में उसकी सीटें आधी हो गई है. झारखंड में भी पार्टी की सीटें घटी हैं.
भाजपा की होगी नैतिक जीत!
इन दोनों विधानसभा चुनावों में अगर भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहता है तो वह उसकी एक नैतिक जीत कहलाएगी. ऐसे में पीएम मोदी को नैतिक बल मिलेगा कि जनता में उनके भरोसे को जो थोड़ा बहुत डेंट लगा था उन्होंने उसे फिर से हासिल कर लिया. ऐसे में सहयोगी जेडीयू और टीडीपी के साथ विपक्ष भी बैकफुट आ जाएगा. इसमें भाजपा की जीत और कांग्रेस की हार होने पर लोकसभा चुनाव में विपक्ष को जो थोड़ी-बहुत मनोवैज्ञानिक बढ़त मिली है वो एक झटके में धाराशायी हो जाएगी.
बदल जाएगी स्थिति
दूसरी तरफ, अगर भाजपा इन दोनों विधानसभा चुनावों में हार जाती है तो नेतृत्व और उसके करिश्मे को लेकर गंभीर सवाल उठेंगे. फिर विपक्ष आक्रामक हो जाएगा. ऐसी स्थिति में महाराष्ट्र में शिवसेना शिंदे गुट के सात और एनसीपी अजित गुट के एक सांसद के सामने भी अस्तित्व का संकट पैदा हो जाएगा. वे उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ जाने से परहेज नहीं करेंगे. इस तरह इंडिया गठबंधन को सीधे आठ सांसदों का साथ मिल जाएगा. दूसरी तरफ राजनीतिक स्थिति को भांपते हुए टीडीपी और जेडीयू के भी पाला बदलने से इनकार नहीं किया सकता है.
रही बात झारखंड की तो यहां जेएमएम के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन की सरकार है. यहां पर भाजपा को लोकसभा चुनाव में ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है. ऐसे में सीधे पर तौर इस राज्य के विधानसभा नतीजे का असर केंद्र पर नहीं पड़ेगा.
फिर दिल्ली की बारी
दिल्ली में फरवरी 2025 में विधानसभा चुनाव होंगे. मौजूदा लोकसभा चुनाव में यहां की सभी सात सीटों पर भाजपा को लगातार तीसरी बार जीत मिली है. लेकिन बीते दो विधानसभा चुनावों से ऐसा हो रहा है कि लोकसभा जीतने वाली भाजपा का विधानसभा चुनाव में सूपड़ा साफ हो जाता है. ऐसे में दिल्ली के विधानसभा चुनाव के नतीजे भी आने वाले 6-8 महीने में देश की राजनीति को प्रभावित करेंगे.