यूक्रेन में कार्रवाई कर रूस ने अमेरिका और यूरोप को बता दी उनकी हैसियत, प्रतिबंध लगाने से अधिक बाइडन के हाथों में कुछ नहीं
रूस पूरी तरह से यूक्रेन के खिलाफ युद्ध का एलान कर चुका है, अब आगे क्या होगा? ये एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब जानने के लिए हर कोई उत्सुक है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि इस लड़ाई का कोई एक पक्ष नहीं है। इसमें जहां अमेरिका को फैसला लेना है वहीं भारत को भी फैसला करना होगा। इसके अलावा दूसरे देशों को भी ऐसा ही निर्णय लेना होगा। एक और सवाल यहां पर बेहद खास है और वो ये कि कहीं ये तीसरे विश्व युद्ध की आहट तो नहीं है। ये सभी सवाल एक-दूसरे से काफी हद तक जुड़े हुए हैं। इसलिए इनका जवाब तलाशना भी बेहद जरूरी है।
विदेश मामलों के जानकार और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पुष्पेश पंत का मानना है कि रूस ने अपना आक्रामक रूप दिखाकर न सिर्फ पश्चिम देशों को बल्कि समूचे यूरोप और खुद को दुनिया की महाशक्ति बताने वाले अमेरिका को उसकी औकात बता दी है। यूक्रेन पर रूस द्वारा हमला करने के बाद भले ही अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों ने उस पर प्रतिबंध लगा दिए हैं लेकिन इससे कुछ होने वाला नहीं है। इससे केवल उनको ही नुकसान होने वाला है। अमेरिका के पास इससे अधिक कोई दूसरा विकल्प है भी नहीं।
प्रोफेसर पंत का ये भी कहना है कि रूस और यूक्रेन के बीच हालात भले ही कैसे भी दिखाई दे रहे हो लेकिन ये विश्व युद्ध में तब्दील नहीं होने वाला है। यूरोप में फ्रांस और जर्मनी दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं। रूस की नार्ड स्ट्रीम 2 पाइप लाइन को रोककर भी कुछ नहीं होने वाला है। हालांकि ये सही है कि इस पर रूस ने अरबों डालर का निवेश किया है। लेकिन दूसरी तरफ ये भी सच्चाई है कि रूस मौजूदा समय में यूक्रेन पर अघोषित रूप से कब्जा कर चुका है। ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के नेताओं से राष्ट्रपति पुतिन ने जो आमने सामने की बैठक में कहा उससे भी उनकी मंशा बेहद साफ हो गई है।
पंत का यहां तक कहना है कि यूक्रेन को आज नहीं तो कल रूस के आगे आत्मसमर्पण करना ही होगा। इसके बाद ही रूस की तरफ से हो रही कार्रवाई को रोका जा सकेगा। यूक्रेन जिस गलतफहमी में है वो भी जल्द ही दूर हो जाएगी। अमेरिका उसका लड़ाई के फ्रंट पर कोई साथ नहीं दे सकेगा। वहीं यूरोप के बड़े देश इससे अलग ही रहेंगे और छोटे देश रूस का सामना कर सकें, उनमें इतना सामर्थ्य नहीं है।
इस पूरे घटनाक्रम में एक बात को समझना बेहद जरूरी है कि अमेरिका का पूरा कारोबार और दूसरे हित जैसे कनाडा और मैक्सिको से जुड़े हैं वहीं यूरोप के रूस के साथ जुड़े हुए हैं। यूरोप के बड़े देश अब ये जान चुके हैं कि अमेरिका ने पहले उन्हें अफगानिस्तान में बेवकूफ बनाया था और अब रूस के खिलाफ भी वो ऐसा ही कर रहा है। इसलिए इस बार अमेरिका की कोई दाल यहां पर नहीं गलेगी। रूस का अपनी कार्रवाई के पीछे केवल इतना ही मकसद है कि यूक्रेन आत्मसमर्पण कर दे। ऐसा होने पर रूस उसको एक आजाद राष्ट्र के तौर पर मान्यता देता रहेगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो यूक्रेन रूस में मिला लिया जाएगा, जिसकी काफी संभावना है।