सांसदों, विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की तेजी से होगी सुनवाई, सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बड़ी बात…
एएनआइ: सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की स्थापना की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट राजी हो गया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और जस्टिस एएस बोपन्ना और हेमा कोहली की पीठ ने कहा कि, वह इस मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करेगा, क्योंकि एमिकस क्यूरी और मामले में अदालत की सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसरिया ने मामले का उल्लेख किया है। सीनियर वकील विजय हंसारिया ने अपने एक ताजा रिपोर्ट में बताया कि, दिसंबर 2018 तक सांसदों, विधायकों और विधान परिषद सदस्यों के खिलाफ कुल लंबित मामले 4,110 थे और अक्टूबर 2020 तक ये 4,859 थे।
दरअसल, पिछले हफ्ते एमिकस क्यूरी ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि दो वर्षों में सांसदों/विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों की संख्या 4,122 से बढ़कर 4,984 हो गई है, जो दर्शाता है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अधिक से अधिक व्यक्ति संसद और राज्य विधानसभाओं में जीतकर पहुंच रहे हैं। पिछले तीन वर्षों में 862 ऐसे मामलों की वृद्धि हुई है। इस अदालत द्वारा कई निर्देशों और निरंतर निगरानी के बावजूद 4,984 मामले लंबित हैं, जिनमें से 1,899 मामले पांच साल से अधिक पुराने हैं।
बता दें कि, 2016 के एक मामले में अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका में रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी, जिसमें सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की स्थापना, दोषी राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध और उनके खिलाफ मामलों के त्वरित निपटारे की मांग की गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि 4,984 मामलों में से 3,322 मजिस्ट्रियल मामले हैं, जबकि 1,651 सत्र मामले हैं। इसमें से ऐसे लंबित मामलों में से 1,899 पांच साल से अधिक पुराने हैं, जबकि 1,475 ऐसे मामले दो से पांच साल की अवधि से लंबित हैं। उन्होंने कहा था कि, यह अत्यंत आवश्यक है कि लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए तत्काल और कड़े कदम उठाए जाएं।
पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय की अनुमति के बिना पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ कोई मुकदमा वापस नहीं लिया जाएगा। निर्देश में जिक्र किया गया था कि, विशेष अदालतों में सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई करने वाले न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय के अगले आदेश तक अपने वर्तमान पदों पर बने रहेंगे।