चीन तेजी के साथ श्रीलंका में पसार रहा अपने पांव, जानें आखिर क्या है इसके पीछे की असल वजह
चीन जापान से लेकर श्रीलंका तक अपने पांव तेजी से पसारने में लगा हुआ है। उसकी नियत को दखते हुए सभी देश उसको लेकर काफी अलर्ट हैं। जापान की तरफ से सोमवार को ही कहा गया था कि चीन के युद्धपोतों ने पिछले वर्ष में करीब 323 बार उनकी जल सीमा का अतिक्रमण किया था। वहीं वर्ष 2020 में अतिक्रमण की ये संख्या 322 थी। वहीं अब चीन श्रीलंका में भी तेजी के साथ अपने दायरे को बढ़ाने में लगा है। इसके लिए चीन ने श्रीलंका के उन इलाकों को चुना है, जिनपर लोगों का ध्यान कम गया है। श्रीलंका को अब वो अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत रणनीतिक दृष्टि से अहम जगह बनाना चाहता है। उसकी मंशा केवल यहीं तक नहीं है, बल्कि वो इसके जरिए हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी और भारत पर निगाह रखने के लिए भी इस्तेमाल करना चाहता है।
पालिसी रिसर्च ग्रुप के एक लेख में यहां तक कहा गया है कि चीन श्रीलंका में तेजी से अपने पांव पसारने में लगा हुआ है। इसमें ये भी कहा गया है कि हाल ही में श्रीलंका में मौजूद चीन के राजदूत की झेंगहोंग ने उत्तरी प्रांत के तमिल बहुल इलाके का दौरा किया था। ये दौरा क्रिसमस से पहले किया गया था। हालांकि, इसको चीन ने एक पारिवारिक दौरा बताया है। चीन के दूतावास की तरफ से कहा गया है कि राजदूत का ये तीन दिवसीय दौरा एक स्टडी टूर था। इसकी काफी समय से योजना थी, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इसमें बार-बार देरी होती चली गई।
हालाांकि, चीन पर निगाह रखने वाले जानकार इस दौरे को केवल स्टडी टूर नहीं मान रहे हैं। इनका मानना है कि चीनी राजदूत का ये दौरा उनकी रणनीति का हिस्सा था। उनका ये भी मानना है कि चीन श्रीलंका में अपनी रणनीति को बढ़ावा देने की योजना पर काम कर रहा है। इसमें खासतौर पर चीन ने उन इलाकों को शामिल करने की योजना बनाई है, जिन पर सरकार का ध्यान भी कम गया है और जो लाइमलाइट से बाहर भी हैं। की झेंगहोंग ने अपने दौरे पर जाफना की पब्लिक लाइब्रेरी को भी देखा और वहां पर फूड पैकेट भी बांटे। इसको उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ संबंधों को मजबूत करना बताया है। इस लाइब्रेरी को यहां पर काफी आइकोनिक माना जाता है, जिसको 1981 में नष्ट कर दिया गया था। बाद में ये भारत के सहयोग से दोबारा बनाई गई थी।
की ने जाफना के पूर्वी अरियालाई में ककूंबर फार्म और थोडावेल्ली में सिल्करोड फूड स्टफ फैक्टरी को भी देखा। इसके बाद वो जाफना के नजदीक मंदिर में भी गए। चीनी राजदूत का ये उत्तरी क्षेत्र में इस तरह का पहला दौरा था। यहां पर रहने वाले लोग पारंपरिक रूप से भारत के काफी करीब माने जाते हैं। यही वजह है कि उत्तरी भाग में रहने वाले श्रीलंकाई लोग यहां पर चीनी निवेश के खिलाफ रहे हैं।