ICMR चीफ बलराम भार्गव ने ‘कोवैक्सिन’ को बताया सार्वजनिक-निजी भागीदारी का सटीक उदाहरण
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के महानिदेशक डा. बलराम भार्गव ने मंगलवार को कहा कि भारत के कोरोना रोधी स्वदेशी टीके कोवैक्सीन का विकास विश्वास और पारदर्शिता के साथ चिन्हित सार्वजनिक-निजी भागीदारी का एक सटीक उदाहरण है। डा. भार्गव अपनी पुस्तक ‘गोइंग वायरल (Going Viral)’ के लोकार्पण के मौके पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत बायोटेक और आइसीएमआर के बीच सहयोग से ही कोवैक्सीन का विकास संभव हो पाया।
‘गोइंग वायरल’ में डा भार्गव ने भारत में कोरोना संक्रमण के पहले मामले से लेकर वैक्सीन के विकास की गाथा लिखी है। उन्होंने वैक्सीन के विकास से लेकर इसके ट्रायल तक के सफर में आई मुश्किलों के बारे में तो लिखा ही है साथ ही सरकार व वैज्ञाानिकों द्वारा मिलकर सफलता हासिल करने का भी उल्लेख किया है। अपनी पुस्तक में उन्होंने आठ महीने के रिकार्ड समय में स्वदेशी कोरोना रोधी टीका विकसित करने से जुड़े अपने अनुभवों को साझा किया है। उन्होंने कहा कि भविष्य में इस तरह की महामारी रोकने के लिए हमारे पर्यावरण की रक्षा करना महत्वपूर्ण होगा।
पुस्तक के विमोचन के मौके पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) दिल्ली के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि देश में कोविड की पहली दो लहरों की तुलना में उतनी ही तीव्रता वाली तीसरी लहर आने की आशंका नहीं है। उन्होंने कहा कि इस समय संक्रमण के मामलों में इजाफा नहीं होना दर्शाता है कि टीके अब भी वायरस से सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं और फिलहाल तीसरी बूस्टर खुराक की कोई जरूरत नहीं है। डा. गुलेरिया ने कहा कि जिस तरह से वैक्सीन संक्रमण की गंभीरता को रोकने और अस्पतालों में भर्ती होने की स्थिति से बचाने के मामले में कारगर साबित हो रहे हैं, अस्पतालों में बड़ी संख्या में लोगों के भर्ती होने समेत किसी बड़ी लहर की संभावना हर दिन क्षीण हो रही है।