अनियंत्रित विदेशी अंशदान के हो सकते हैं विनाशकारी परिणाम, सुप्रीम कोर्ट में बोला केंद्र
केंद्र ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि विदेशी चंदा प्राप्त करने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है और अगर इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो इसके ‘विनाशकारी परिणाम’ हो सकते हैं। विदेशी अंशदान (विनियमन) कानून (एफसीआरए) 2010 में किए गए संशोधनों का बचाव करते हुए सरकार ने जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि बदलाव का उद्देश्य अनुपालन तंत्र को सुव्यवस्थित करना और पारदर्शिता तथा जवाबदेही बढ़ाना है। पीठ में जस्टिस दिनेश माहेश्र्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार भी शामिल थे।
सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि खुफिया ब्यूरो (आइबी) से मिली सूचना के मुताबिक ऐसे उदाहरण हैं कि विदेशी योगदान से प्राप्त कुछ धन का दुरुपयोग नक्सलियों के प्रशिक्षण के लिए किया गया है। पीठ ने विदेशी अंशदान विनियमन (संशोधन) कानून, 2020 से संबंधित मुद्दों को उठाने वालों सहित कई याचिकाओं पर अपनी सुनवाई पूरी कर ली है। सालिसिटर जनरल ने कहा कि एक राष्ट्र के रूप में भारत हमेशा विदेशी चंदे के बारे में बहुत जागरूक रहा है और इस तरह के वित्तपोषण के किसी भी दुरुपयोग से बचने के लिए एक नीति रही है।
मेहता ने कहा कि प्रत्येक विदेशी अंशदान केवल एफसीआरए खाते के रूप में नामित खाते में प्राप्त किया जाएगा, जो कि नई दिल्ली में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) की मुख्य शाखा में खोला जाएगा। उन्होंने इस मामले में केंद्र द्वारा शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि प्रक्रिया के आधार पर एसबीआइ, नई दिल्ली की मुख्य शाखा में 19,000 से अधिक खाते पहले ही खोले जा चुके हैं। सुनवाई के दौरान, पीठ ने मेहता से गृह मंत्रालय द्वारा निपटाए जा रहे विदेशी चंदे से संबंधित मुद्दों के बारे में पूछा।
पीठ ने कहा कि सरकार को इस मुद्दे पर नियामक उपायों से निपटने के दौरान सभी संभावनाओं पर विचार करना होगा। शीर्ष अदालत ने फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा कि केंद्र और याचिकाकर्ताओं की ओर से एक सप्ताह के भीतर लिखित दलीलें दाखिल की जाएं। इससे पहले अदालत में दाखिल अपने हलफनामे में केंद्र ने कहा था कि बिना किसी नियमन के ‘बेलगाम विदेशी चंदा’ प्राप्त करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है।