नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की तैयारी, फंडिंग रोकने और फ्रंटल आर्गेनाइजेशन पर शिकंजा कसने पर जोर
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में रविवार को उच्चस्तरीय बैठक हुई। इसमें नक्सलियों के खिलाफ अभियान तेज करने और उनके लिए फंडिंग रोकने दो प्रमुख मुद्दे थे, जिसमें छह मुख्यमंत्रियों और चार अन्य राज्यों के शीर्ष अधिकारियों ने भाग लिया। लगभग तीन घंटे तक चली बैठक के दौरान माओवादियों के शीर्ष संगठनों के खिलाफ कार्रवाई, सुरक्षा में कमी को भरने, प्रवर्तन निदेशालय, राष्ट्रीय जांच एजेंसी और राज्य पुलिस द्वारा ठोस कार्रवाई जैसे अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की गई।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि बैठक में शामिल होने वाले मुख्यमंत्रियों में नवीन पटनायक (ओडिशा), के चंद्रशेखर राव (तेलंगाना), नीतीश कुमार (बिहार), शिवराज सिंह चौहान (मध्य प्रदेश), उद्धव ठाकरे (महाराष्ट्र) और हेमंत सोरेन (झारखंड) शामिल थे।
चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों की जगह वरिष्ठ अधिकारियों ने लिया भाग
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, छत्तीसगढ़ के भूपेश बघेल, आंध्र प्रदेश के वाई एस जगन मोहन रेड्डी और केरल के सीएम पिनाराई विजयन बैठक में शामिल नहीं हुए। उनके राज्यों का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिकारियों ने किया। गृह मंत्री द्वारा बुलाई गई बैठक में शामिल नहीं होने पर छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि बैठक में मुख्य सचिव और डीजीपी दोनों शामिल हुए हैं, मैं इसलिए नहीं जा पाया क्योंकि बैठक बुलाए जाने से बहुत पहले ही मैंने एक कार्यक्रम को अपना समय दे दिया था इसलिए इसे राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।
नक्सलियों के खिलाफ एक्शन प्लान
सूत्रों के अनुसार, नक्सलियों के खिलाफ अभियान तेज करे, सुरक्षा की कमी को भरने, उग्रवादियों के फंडिंग रोकने और ईडी, एनआईए और राज्य पुलिस की ठोस कार्रवाई पर बैठक में चर्चा हुई। बैठक में अन्य मुद्दों पर चर्चा और मामलों के अभियोजन, मुख्य माओवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई, राज्यों के बीच समन्वय, राज्य खुफिया शाखाओं और राज्यों के विशेष बलों की क्षमता का निर्माण, मजबूत पुलिस स्टेशनों के निर्माण पर चर्चा की गई।
गृह मंत्री ने की विकास परियोजनाओं की समीक्षा
सूत्रों ने बताया कि गृह मंत्री ने मुख्यमंत्रियों और अधिकारियों के साथ सुरक्षा स्थिति और माओवादियों के खिलाफ चल रहे अभियानों और नक्सल प्रभावित इलाकों में चल रही विकास परियोजनाओं की समीक्षा की। शाह ने राज्यों की आवश्यकताओं, उग्रवादियों से निपटने के लिए तैनात बलों की संख्या, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में किए जा रहे सड़कों, पुलों, स्कूल और स्वास्थ्य केंद्रों के निर्माण जैसे विकास कार्यों का जायजा लिया। बैठक के दौरान ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कहा कि उनके राज्य में माओवादी समस्या केवल तीन जिलों तक सिमट कर रह गई है और बैठक में चर्चा की गई कि इसे और कम करने के लिए क्या किया जाना चाहिए।
प्रभावित क्षेत्रों में विकास मुद्दों पर चर्चा
बैठक में जिन विकास मुद्दों पर चर्चा की गई, उनमें सड़क संपर्क, लंबे समय से लंबित सड़कों के निर्माण में तेजी लाना, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पिछले पांच वर्षों में खराब नेटवर्क जोन में मोबाइल टावरों को अपग्रेड करके दूरसंचार नेटवर्क में सुधार किया गया और अधिक मोबाइल टावरों की स्थापना का अभियान शामिल है। केंद्र सरकार इन क्षेत्रों में एकलव्य स्कूल स्थापित करने और माओवादी प्रभावित जिलों में सभी ग्राम पंचायतों में डाकघरों का कवरेज सुनिश्चित करने की भी योजना बना रही है। बैठक में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव, गिरिराज सिंह, अर्जुन मुंडा और नित्यानंद राय भी शामिल हुए। केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला, खुफिया ब्यूरो के निदेशक अरविंद कुमार, केंद्र और राज्य सरकारों के वरिष्ठ नागरिक और पुलिस अधिकारी भी इसमें शामिल हुए।
45 जिलों में सिमटी माओवादी हिंसा
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देश में माओवादी हिंसा में काफी कमी आई है। यह खतरा अभी लगभग 45 जिलों में व्याप्त है। हालांकि, देश के कुल 90 जिलों को माओवादी प्रभावित माना जाता है और यह मंत्रालय की सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) योजना के अंतर्गत आते हैं। नक्सल समस्या, जिसे वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) भी कहा जाता है, 2019 में 61 जिलों में और 2020 में केवल 45 जिलों में रिपोर्ट की गई थी। 2015 से 2020 तक वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में विभिन्न हिंसा में लगभग 380 सुरक्षाकर्मी, 1,000 नागरिक और 900 नक्सली मारे गए। आंकड़ों में कहा गया है कि इसी अवधि के दौरान कुल 4,200 नक्सलियों ने भी आत्मसमर्पण किया है।