‘मुलायम’ पहल न पिघला सकी समाजवादी कुनबे के रिश्तों पर जमी बर्फ, जानिए- सैफई में कैसे बदले सियासी रंग
Samajwadi Party Clashes सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की पहल पर सैफई गांव में करीब ढाई दशक पहले शुरू हुई होली अब सियासी रंग बदल रही है। धरतीपुत्र ने अपनों को करीब लाने के लिए वर्ष 1995-96 में शुरुआत की तो समय के साथ ये आयोजन वृहद स्वरूप लेता गया। होली के दिन गांव आकर मुलायम आखत डालने के बाद पूरे गांव में होरियारों के बीच घूमकर एक-एक व्यक्ति के घर पहुंचकर उनका हाल-चाल लेते थे। सद्भाव की होली के रंग गांवों ही नहीं आसपास के जिलों में भी फैले, लेकिन अब सद्भाव-समरसता के रंग फीके पड़ रहे हैैं।
कपड़ा फाड़ होली थी सैफई की पहचान: एक जमाना था जब सैफई की कपड़ा फाड़ होली विख्यात थी। बाहर से आने वाला हर व्यक्ति इसमें शामिल होता था। मुलायम के भाई शिवपाल सिंह यादव भी कई बार कपड़ा फाड़ होली को समर्थन देते दिखे थे। हालांकि वर्ष 2006-07 में मुलायम जब उप्र सरकार में आए तो उन्होंने कपड़ा फाड़ होली बंद करा दी थी। उस वक्त कन्नौज से सांसद अखिलेश यादव ने गुलाब जल ड्रमों में भरवाकर सैफई मंगवाया और उसमें रंग मिलाकर होली खेली जाने लगी। कई साल तक इस होली के रंग चटक दिखे।
वर्ष 2010 से शुरू हुई फूलों की होली: यहां होली में तीसरा बदलाव तब आया जब वर्ष 2010 से यहां फूलों की होली खेली जाने लगी। इटावा-मैनपुरी सहित आसपास के गांवों के लोग यहां पर नेताजी का भाषण सुनने आने लगे लेकिन उसमें भी बदलाव हुआ। स्वास्थ्य कारणों से इस वर्ष मुलायम सिंह यादव नहीं आ सके और मंच से संबोधन की परंपरा अधूरी रह गई।
वर्ष 2019 से खेमों में बंटी: सैफई की होली में बिखराव वर्ष 2019 से तब आया जब शिवपाल सिंह यादव ने अलग पार्टी बनाकर परिवार की होली से खुद को अलग कर लिया। शिवपाल ने वर्ष 2019 में सैफई के एसएस मेमोरियल स्कूल में अपना मंच बनाया था। हालांकि वर्ष 2020 में मुलायम सैफई होली खेलने आए तो उनके आवास जाकर शिवपाल ने आशीर्वाद लिया था। तब ऐसा लगा था कि समाजवादी कुनबे के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलने लगी है, लेकिन इस वर्ष की होली में अखिलेश व शिवपाल की होली के मंच अलग-अलग सजे दिखे। मंच पर मुलायम की मौजूदगी में होने वाली अखिलेश व शिवपाल के होली मिलन की परंपरा भी इस बार टूट गई। दो खेमों में बंटी सैफई की होली में जहां एक तरफ अखिलेश यादव संग प्रो. रामगोपाल यादव के अलावा अक्षय यादव, धर्मेंद्र यादव, तेज प्रताप सिंह यादव सहित परिवार की युवा पीढ़ी दिखी तो वहीं शिवपाल के साथ उनके पुत्र आदित्य यादव ही थे। आसपास के गांवों के लोग भी दो हिस्सों में बंटे दिखे, हालांकि नेताजी के न आने की निराशा दोनों ओर दिखी।