22 November, 2024 (Friday)

पोखरा काठमांडू और विराटनगर तक पहुंची रेल, भारत-नेपाल संबंधों के लिए साबित होगी मील का पत्थर

India-Nepal Relation तिब्बत के रास्ते नेपाल तक रेललाइन बिछाने की चीन की योजना के पीछे उसकी मंशा नेपाल में परिवहन ढांचा को विकसित करने के साथ ही अपना तंत्र मजबूत करना भी है। नेपाल के अनेक आर्थिक विशेषज्ञ यह जानना चाहते हैं कि नेपाल आखिर चीन को क्या निर्यात करेगा? क्या नेपाल सरकार ने यह अध्ययन कराया है कि कोलकाता पोर्ट से आने वाली वस्तुओं और चीन से तिब्बत होकर सड़क और भविष्य के रेल से आने वाली वस्तुओं के दाम एक जैसे रह पाएंगे।

रेल मार्ग का निर्माण करना केरुंग काठमांडू से कहीं ज्यादा आसान : आशंका तो पूरी यही है कि चीन के रास्ते आने वाला सामान महंगा ही होगा। अगर चीन केवल व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भारतीय सीमा तक रेल चाहता है, तो उसे नाथुला दर्रा वाले मार्ग पर विचार करना चाहिए। यहां केवल 300 किमी की दूरी पूरी कर जलपाईगुड़ी से तिब्बत सीमा तक पहुंचा जा सकता है। यहां की ऊंचाई भी चार हजार मीटर है, जहां से रेल मार्ग का निर्माण करना केरुंग काठमांडू से कहीं ज्यादा आसान है और इस पथ का नेपाल को भी लाभ होगा।

चीन सामरिक कारणों से भी भारत पर दबाव बनाने के लिए ऐसा कर रहा : अगर भारतीय सहयोग से नेपाल के पूर्व पश्चिम कॉरिडोर या फिर न्यू जलपाईगुड़ी से काकरभिट्टा रेलवे ट्रैक बन जाता है तो वह नेपाल के हित में भी है। वहीं नेपाल के कई अन्य विशेषज्ञ यह भी कहते हैं अगर चीन नेपाल के रास्ते भारत की सीमा तक आता है तो वह केवल व्यापार के लिए नहीं, बल्कि सामरिक कारणों से भी भारत पर दबाव बनाने के लिए ऐसा कर रहा है। अत: नेपाल सरकार को ऐसी स्थिति से बचना चाहिए और यह नेपाल के हित में भी नहीं है।

इससे नेपाल के ऊपर एक बड़ा कर्ज बोझ हो जाएगा। साथ ही भारत से रिश्ते खराब होने की भी पूरी आशंका है। वहीं उपमहाद्वीप के कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि तिब्बत के प्राकृतिक संसाधनों के साथ ही नेपाल के संसाधनों का भी चीन दोहन करेगा। इससे हिमालय के प्राकृतिक चक्र को नुकसान पहुंचेगा। पोखरा के आगे नेपाल तिब्बत सीमा पर यूरेनियम का भंडार होने की संभावना है, चीन इसका भी दोहन करना चाहता है।

नेपाल को रेलवे के विकास में सहयोग करना चाहिए : वर्तमान में नेपाल के तीव्र गति विकास के लिए नेपाल भारत आपसी संबंधों के लिए और भारत के खुद के सामरिक आर्थिक हितों के लिए नेपाल को रेलवे के विकास में सहयोग करना चाहिए। जयनगर जनकपुर बर्दीवास रूट को पथलैया तक विस्तार देना और इसे रक्सौल बीरगंज हेठौड़ा काठमांडू के बनने वाले रूट से जोड़ देना चाहिए। ईटहरी को पथलैया से और धनगढ़ी को काठगोदाम से यदि जोड़ दिया जाए तो नेपाल के तराई के रास्ते यह दिल्ली और पूवरेत्तर भारत की दूरी को काफी हद तक कम कर सकता है। विराटनगर को धरान और ईटहरी को काकरभिट्टा से ऐसे ही उत्तर प्रदेश की सीमा नौतनवा से भैरहवा और वहां से पोखरा या फिर रूपईडीहा नेपालगंज रोड होते नेपालगंज तक ट्रेन जा सकती है।

पोखरा काठमांडू और विराटनगर तक पहुंची रेल : बिहार सीमा के बथनाहा जोगबनी होते हुए विराटनगर तक रेलवे सेवा को विस्तार दिया जा रहा है। पोखरा काठमांडू और विराटनगर तक पहुंची रेल नेपाल भारत संबंधों के लिए मील का पत्थर होगी। यदि अकेले नेपाल का ईस्ट वेस्ट रेलवे प्रोजेक्ट ही केवल भारत के माध्यम से पूर्ण हो जाए तो मेची से महाकाली नदी तक विस्तृत नेपाल में सफर सस्ता और सुगम ही नहीं होगा, बल्कि इससे यात्र अवधि भी बहुत कम हो जाएगी। इतना ही नहीं, यदि इस दिशा में योजनाबद्ध तरीके से कार्य हो तो उत्तर पश्चिमी भारतीय राज्यों से असम की ओर जाने का न केवल वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध होगा, बल्कि इससे भारत नेपाल संबंधों को भी फिर से नई ऊंचाई पर ले जाया जा सकता है।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *