यूपी में मामूली अपराधों में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमे के लिए मजिस्ट्रेट कोर्ट गठित करें, सुप्रीम कोर्ट ने दिए निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट को विशेष मजिस्ट्रेट कोर्टों का गठन करने के लिए नई अधिसूचना जारी करने को कहा है जहां जनप्रतिनिधियों के खिलाफ मामूली अपराधों में मुकदमे चलाए जा सकेंगे और अपराध की गंभीरता को देखते हुए मामलों का आवंटन सत्र या मजिस्ट्रेट कोर्टों में किया जा सकेगा। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि उसके आदेशों का ‘स्पष्ट रूप से गलत अर्थ’ निकाला गया और उनके आधार पर उत्तर प्रदेश में इस तरह की अदालतों का गठन नहीं किया गया।
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने हाई कोर्ट से ‘वर्तमान आदेश के अनुरूप’ नया परिपत्र जारी करने को कहा। अदालत ने जनप्रतिनिधियों के खिलाफ मामूली अपराधों में मुकदमा चलाने के लिए उत्तर प्रदेश में विशेष मजिस्ट्रेट कोर्टो का गठन नहीं करने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि शीर्ष अदालत के निर्देशों का स्पष्ट रूप से गलत अर्थ निकालते हुए, उनके आधार पर हाई कोर्ट ने 16 अगस्त, 2019 को अधिसूचना जारी की थी।
विशेष पीठ ने यह आदेश उन याचिकाओं पर दिया जिनमें कानूनी सवाल उठाया गया था कि जनप्रतिनिधियों के खिलाफ मामूली अपराध के मामलों, जिन पर मजिस्ट्रेट कोर्ट में मुकदमा चल सकता है, की सुनवाई क्या सत्र न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली विशेष अदालत में होनी चाहिए। सत्र न्यायाधीश, न्यायिक मजिस्ट्रेट से वरिष्ठ होते हैं।
आरोप लगाया गया कि सत्र न्यायाधीशों द्वारा इस तरह के मुकदमों को देखने से अपील के अधिकार के लिए एक न्यायिक मंच कम हो जाता है जो आमतौर पर अन्य आरोपितों को उपलब्ध होता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे मामले जिन पर मजिस्ट्रेट कोर्ट सुनवाई कर सकते हैं, लेकिन जो अब तक सत्र अदालतों में चल रहे थे उन्हें वापस मजिस्ट्रेट कोर्टो में भेजा जाएगा और कार्यवाही वहीं से शुरू होगी जहां छोड़ी गई थी। सुनवाई नए सिरे से नहीं होगी।
यह आदेश समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम खान की याचिका पर आया है। इसमें आरोप लगाया गया था कि उन पर मजिस्ट्रेट कोर्ट के बजाय विशेष सत्र अदालत में अभियोजन चलाया गया। इसमें कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने मजिस्ट्रेट कोर्ट में चलाए जा सकने वाले मामले विशेष सत्र अदालत में स्थानांतरित करने को नहीं कहा था।