01 November, 2024 (Friday)

दोषियों को दोबारा जेल भिजवाने तक लड़ती रहूंगी:बिलकिस बोलीं- सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी न्याय दिया, अब फिर देगा

2002 गुजरात दंगों के सबसे निर्मम और बदनाम मामलों में से एक बिलकिस बानो केस फिर सुर्खियों में हैं। गैंगरेप और हत्या के मामले में आरोपी 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है। साथ ही रिहाई के गुजरात सरकार के फैसले को सही ठहराने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रिव्यू पिटिशन दाखिल की है।

दैनिक भास्कर ने बिलकिस से बात करने की कोशिश की, लेकिन वे फिलहाल उनके करीबी रज्जाक बारिया या फिर पति के जरिए ही बात कर रही हैं। हमारे भेजे सवाल पर उन्होंने कहा- ‘कोर्ट ने मुझे पहले भी न्याय दिया, अब भी न्याय देगा। मुझे पूरा भरोसा है। मैं इन लोगों को दोबारा जेल भिजवाने तक लड़ती रहूंगी। मेरे साथ जो अन्याय हुआ है, उसके खिलाफ मैं लड़ती रहूंगी।’

इससे पहले बिलकिस बानो ने कहा था कि उनके और उनके परिवार के सात लोगों से जुड़े मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई ने न्याय पर से उनके भरोसे को तोड़ दिया है।

बिलकिस के पति याकूब बोले- हम डरे हुए हैं
सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल होने के बाद भास्कर ने बिलकिस के पति याकूब रसूल से फोन पर बात की। याकूब ने बताया कि अभी तक सरकार ने हमें 11 दोषियों की रिहाई से संबंधित कोई डॉक्यूमेंट नहीं दिए थे।

वकील शोभा गुप्ता ने कोर्ट से ये कागजात निकाले और फिर रिव्यू पिटिशन दाखिल की है। मेरे घर से निकलने से पहले बिलकिस ने भी यही कहा कि उन्हें सिर्फ सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद है।

याकूब ने आगे कहा- ‘मुझे पूरी उम्मीद है कि बिलकिस को पहले भी इंसाफ मिला था, आज भी हम सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद करते हैं कि बिलकिस को इंसाफ मिलेगा और 11 दोषी वापस जेल जाएंगे।’

क्या आपका गुजरात सरकार से भरोसा उठ गया है, सवाल के जवाब में याकूब ने कहा- ‘हमें पहले भी सरकार से कोई उम्मीद नहीं थी, उन्होंने कभी हमारी मदद नहीं की। हमें सिर्फ सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद थी और आज भी वहीं से हैं।’

दोषियों के रिहा होने के बाद धमकी मिलने से जुड़े सवाल पर याकूब ने कहा- ‘हम बाहर नहीं निकल रहे हैं, मैं खुद किसी और का फोन इस्तेमाल करता हूं। हम बहुत ज्यादा डरे हुए हैं, हम रंधीकपुर गए ही नहीं हैं।’

याकूब के मुताबिक, दोषियों की रिहाई के बाद बिलकिस ने भी ये ही कहा कि सुप्रीम कोर्ट जाए बिना न्याय नहीं मिलेगा। उन्होंने बताया कि न सरकार से हमारे पास अभी तक कोई आया है और न ही पुलिस प्रशासन ने हमसे संपर्क किया है। पहले से दायर पिटिशन पर याकूब ने कहा- ‘हमारी तरफ से जो इंसाफ की मांग की गई ये बहुत अच्छी बात है।’

रिव्यू पिटिशन का आधार क्या?
गुजरात में बिलकिस के स्थानीय वकील नयन पटेल ने बताया कि रिव्यू पिटिशन में 13 मई 2022 के आदेश पर दोबारा विचार की मांग की गई है। इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गैंगरेप के दोषियों की रिहाई के मामले में 1992 में बने नियम लागू होंगे। 11 दोषियों की रिहाई इसी आधार पर हुई है।

इस पिटिशन में बिलकिस की ओर से कहा गया है कि इस मामले में रिहाई की नीति महाराष्ट्र की लागू होनी चाहिए, न कि गुजरात की। कानून के मुताबिक, समुचित सरकार का मतलब इस मामले में महाराष्ट्र सरकार है ना कि गुजरात सरकार, क्योंकि महाराष्ट्र में ही यह मामला सुना गया और सजा भी वहीं सुनाई गई।

पहले से सुनवाई कर रही बेंच के पास जा सकता है मामला
मामले को बुधवार को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के सामने रखा गया। उन्होंने कहा कि वह विचार करेंगे कि बिलकिस की रिव्यू पिटिशन को भी उसी बेंच के सामने लगाया जाए, जो पहले इस मामले की सुनवाई कर रही है।

इस मामले में पहले भी सांसद महुआ मोइत्रा, सुभाषिनी अली, रूप रेखा वर्मा और रेवती लाल ने भी PIL दायर की है। उधर, बिलकिस के करीबी रज्जाक बारिया ने बताया कि पैरोल पर बाहर आने के दौरान भी 11 दोषियों में से कई के खिलाफ पुलिस केस दर्ज हुए, लेकिन उन्हें सजा माफी की प्रोसेस के दौरान दरकिनार कर दिया गया

इससे पहले 13 मई को सुप्रीम कोर्ट ने एक दोषी की याचिका को सुनते हुए कहा था कि सजा 2008 में मिली, इसलिए रिहाई के लिए 2014 में गुजरात में बने कड़े नियम लागू नहीं होंगे, बल्कि 1992 के नियम लागू होंगे। गुजरात सरकार ने इसी आधार पर 14 साल की सजा काट चुके लोगों को रिहा किया था।

अब बिलकिस बानो 13 मई के आदेश पर पुनर्विचार की मांग कर रही हैं। उनका कहना है कि जब मुकदमा महाराष्ट्र में चला, तो नियम भी वहां के लागू होंगे, गुजरात के नहीं।

गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा?
बिलकिस बानो के दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा कि समय से पहले उनकी रिहाई एकदम सही है। गुजरात सरकार ने सभी नियमों का पालन करते हुए उन्हें रिहा किया है। हलफनामे में कहा गया कि राज्य सरकार ने सभी रायों पर विचार किया और 11 कैदियों को रिहा करने का फैसला किया। उन्होंने जेलों में 14 साल और उससे ज्यादा की सजा पूरी कर ली है और उनका व्यवहार अच्छा पाया गया है।

अच्छे व्यवहार को लेकर भी पिटिशन में सवाल
गुजरात सरकार की तरफ से कोर्ट में दाखिल हलफनामे से ही सामने आया है कि पैरोल पर बाहर आए मितेश भट्‌ट ने जून 2020 में एक और महिला से रेप की कोशिश की थी। इसकी FIR रंधीकपुर थाने में दर्ज है। 57 साल के मितेश भट्ट पर 19 जून 2020 को रंधीकपुर पुलिस थाने में IPC की धारा 354, 504, 506 (2) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

मितेश भट्ट पर जून 2020 के दौरान पैरोल पर बाहर रहते हुए एक महिला से रेप की कोशिश का आरोप लगा। गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में इसका जिक्र किया था।
मितेश भट्ट पर जून 2020 के दौरान पैरोल पर बाहर रहते हुए एक महिला से रेप की कोशिश का आरोप लगा। गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में इसका जिक्र किया था।

मितेश को 25 मई 2020 तक 954 दिनों की पैरोल और फरलो लीव्स मिल चुकी थीं। 2020 में FIR दर्ज होने के बाद भी वह 281 दिनों तक जेल से बाहर था। जिला पुलिस अधीक्षक दाहोद को ही इस बात की जानकारी थी।

गुजरात सरकार ने हलफनामे में यह भी कहा है कि मार्च 2021 में SP CBI, स्पेशल क्राइम ब्रांच, स्पेशल सिविल जज (CBI), सिटी सिविल एंड सेशन कोर्ट, ग्रेटर बॉम्बे ने कैदियों की शीघ्र रिहाई का विरोध किया था। दाहोद SP, CBI और मुंबई की विशेष CBI अदालत के अलावा दाहोद कलेक्टर, अतिरिक्त DGP (कारागार) और गोधरा के सीनियर डिस्ट्रिक्ट सेशन जज ने भी इनकी रिहाई पर आपत्ति जताई।

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