23 November, 2024 (Saturday)

बीमारियों से निपटने में परपंरागत चिकित्सा पद्धतियों को विश्वसनीय और लोकप्रिय बनाने पर जोर

सरकार ने कोरोना संकट से सबक लेते हुए बीमारियों से निपटने में आयुर्वेद जैसी परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों पर जोर दिया है और संबंधित आवेदन, पंजीकरण, विनिर्माण और परीक्षण प्रक्रियाओं को सरल बनाया है।

आयुष राज्य मंत्री डा. मुंजपारा महेंद्रभाई कालूभाई ने यूनीवार्ता के साथ एक विशेष भेेंटवार्ता में कहा कि गुजरात के जामनगर में वैश्विक परंपरागत औषधि केन्द्र, ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन (जीसीटीएम) आयुष मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन संयुक्त रूप से विकसित कर रहे हैं। यह दुनिया भर में पारंपरिक चिकित्सा के लिए अपनी तरह का पहला वैश्विक केन्द्र है। उन्होंने कहा कि इससे आयुष चिकित्सा पद्धतियों को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाने में मदद मिलेगी और संबंधित औषधियों की विश्वसनीयता बढ़ेगी।

उन्होेंने कहा कि सरकार ने आयुष सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं। अंतरराष्ट्रीय प्रसार को बढ़ावा देने और आयुष चिकित्सा पद्धति की वैश्विक स्वीकार्यता के लिए भी कई योजनाएं लागू की गई हैं। पारंपरिक दवाओं के निर्माण के लिए लाइसेंस देने की प्रक्रिया को आसान किया गया है तथा व्यवस्था को और अधिक पारदर्शी बनाने के लिए एक ऑनलाइन आवेदन प्रणाली शुरू की। आयुर्वेद और अन्य भारतीय पारंपरिक दवाओं के क्षेत्र में मानकों को मजबूत करने, बढ़ावा देने और विकसित करने में मदद करने के लिए फार्माकोपिया कमीशन फॉर इंडियन मेडिसिन एंड होम्योपैथी और अमेरिकन हर्बल फार्माकोपिया के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए है। निर्यात को विस्तार देने के लिए आयुष निर्यात संवर्धन परिषद की भी स्थापना की है। आयुष अस्पतालों और औषधालयों की संख्या बढ़ाकर आयुष सेवाओं तक बेहतर पहुंच प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय आयुष मिशन शुरू करने, कैंसर की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम में आयुष को शामिल करने जैसी विभिन्न नीतिगत पहल की हैं। एकीकृत स्वास्थ्य सेवा के तहत कई बीमारियों का एलोपैथी और आयुर्वेद को साथ लेकर इलाज किया जा रहा है। जीसीटीएम देश में स्थापित किया जा रहा है, इसलिए भारत की सभी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को भविष्य में स्वाभाविक रूप से बढ़त मिलेगी।

उन्होंने कहा कि मजबूत बुनियादी ढांचे के निर्माण, अनुसंधान को बढ़ावा तथा आयुष प्रणालियों को सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में पारंपरिक चिकित्सा को सक्रिय रूप से एकीकृत किया जा रहा है। जीसीटीएम उस दिशा में एक कदम है। इसका उद्देश्य साक्ष्य आधारित नीतियों और मानकों के आधार पर आधुनिक तकनीक से पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों और चिकित्सा के उपयोग को जोड़ना तथा देशों को इसे अपने स्वास्थ्य ढांचे में एकीकृत करने में मदद करना है। इस संदर्भ में जीसीटीएम पारंपरिक चिकित्सा पद्धति की गुणवत्ता, सुरक्षा, प्रभावी और तर्कसंगत उपयोग पर भी ध्यान केंद्रित करेगा।

डा. मु्ंजपारा ने कहा कि चिकित्सा की पारंपरिक प्रणालियों की अपनी वैज्ञानिक पृष्ठभूमि है और उनके अपने मौलिक सिद्धांत हैं जो समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। इन प्रणालियों ने पुरानी और जटिल स्वास्थ्य चुनौतियों के खिलाफ अपनी क्षमता को साबित किया है। पारंपरिक दवाओं का व्यापक और स्पष्ट उपयोग इसकी प्रभावशीलता और साक्ष्य को दर्शाता है। काेरोना महामारी के दाैरान आयुष चिकित्सा पद्धतियों ने अभूतपूर्व वृद्धि देखी गयी है।

उन्होंने कहा, “ पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियां जटिल स्वास्थ्य समस्याओं के मामलों में भी बेहद प्रभावी हो सकती है। हमने इस क्षेत्र की सफलताओं को सुनिश्चित करने और भारतीय पारंपरिक चिकित्सा क्षेत्र के विकास में सहायता के लिए कई उपाय किए हैं। हमारा निरंतर प्रयास परंपरागत औषधि की सुरक्षा, प्रभाव, गुणवत्ता और तर्कसंगत उपयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए आयुष क्षेत्र के भीतर मानकों को मजबूत करना, विकसित, विनियमित करना और बढ़ावा देना है ताकि अधिक से अधिक लोग आयुर्वेद और अन्य पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों का लाभ अनुभव कर सकें। अनुसंधान परिषदें एकीकृत अनुसंधान के माध्यम से साक्ष्य आधारित प्रथाओं को बढ़ावा देने के प्रयास कर रही हैं जिससे इसकी वैश्विक पहुंच और अधिक व्यापक होगी।”

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत कई मायनों में चिकित्सा के पारंपरिक रूपों का केन्द्र रहा है। संपूर्ण स्वास्थ्य को प्राप्त करने के लिए हर साल बढ़ी संख्या में सैलानी भारत आते हैं। सरकार का लक्ष्य आयुष प्रणाली के माध्यम से भारत को स्वास्थ्य और कल्याण पर्यटन के लिए एक गंतव्य के रूप में स्थापित करना है। आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा और पारंपरिक चिकित्सा के अन्य रूपों का योगदान और लोकप्रियता अद्वितीय है। भारत की पारंपरिक दवा बाजार में हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है। विकासशील देशों के लिए अनुसंधान और सूचना प्रणाली, आरआईएस की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि आयुष बाजार आकार वर्ष 2014 और 2020 के बीच 17 प्रतिशत बढ़कर 18.1 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। वर्ष 2016 में यह हिस्सेदारी 0.5 प्रतिशत से बढ़कर अब 2.8 प्रतिशत हो गई है।

डा. मुंजपारा ने कहा कि सरकार ने आयुष के क्षेत्र में चिकित्सा पर्यटन को बढ़ाने और विश्व स्तरीय अत्याधुनिक आयुष अस्पतालों की स्थापना करके सहायता प्रदान करने तथा चिकित्या मूल्य यात्रा के लिए चैंपियन सेवा क्षेत्र योजना बनाई है। चिकित्सा, स्वास्थ्य, योग और आयुर्वेद पर्यटन के प्रोत्साहन के लिए एक राष्ट्रीय चिकित्सा और कल्याण पर्यटन बोर्ड भी विकसित किया है। अगले सप्ताह 20 अप्रैल से 22 अप्रैल तक गुजरात के गांधीनगर में आयोजित होने वाले वैश्विक आयुष निवेश एवं नवाचार शिखर सम्मेलन के माध्यम से चिकित्सा पर्यटन के क्षेत्र में विभिन्न पक्षों की रुचि को और बढ़ावा मिलेगा। इससे भारत को आयुर्वेद, योग एवं प्राकतिक चिकित्सा, सिद्ध सहित अन्य पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों के केंद्र के रूप में आध्यात्मिक दर्शन के साथ भारतीय जीवन शैली के अभिन्न अंग के रूप में स्थापित करने में मदद मिलेगी।

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