जनहित याचिका में झूठे तथ्य पेश करने वालों पर केंद्र ने की कार्रवाई की मांग, 2009 के दंतेवाड़ा नरसंहार मामले में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की अर्जी
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है जिसमें जनहित याचिका दाखिल कर झूठे और फर्जी तथ्य कोर्ट के समक्ष रखे जाने पर याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने और उन्हें दोषी ठहराने की मांग की है। केंद्र सरकार ने कहा है कि नक्सल आतंकवाद को ढांकने और सुरक्षा बलों को दंडित किए जाने के उद्देश्य से याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर झूठे और मनगढ़ंत साक्ष्य पेश किए, इसके लिए उन्हें दंडित किया जाए।
केंद्रीय एजेंसी को जांच सौंपे जाने की मांग
केंद्र सरकार ने कोर्ट से इस मामले की जांच सीबीआइ या एनआइए को सौंपे जाने की भी मांग की है। शीर्ष कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र की इस अर्जी पर याचिकाकर्ताओं से जवाब मांगा है। मामले पर 28 अप्रैल को फिर सुनवाई होगी। केंद्र सरकार ने यह अर्जी 2009 में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में कुछ गांवों में नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे आपरेशन के दौरान सुरक्षा बलों पर गांव वालों की हत्या करने व उनके साथ बर्बरता करने का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका के मामले में दाखिल की है। 2009 से लंबित इस जनहित याचिका में पूरे मामले की सीबीआइ से जांच कराने और पीड़तों को मुआवजा देने की मांग की गई है। यह मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार व अन्य पीड़ितों के परिजनों की ओर से दाखिल की गई थी। उक्त घटना में करीब दर्जनभर गांव वाले मारे गए थे।
कोर्ट में झूठे तथ्य पेश करने का आरोप
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में बहुत से आदेश दे चुका है। शुक्रवार को यह मामला जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष फिर सुनवाई पर लगा था। केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता व वकील रजत नायर ने कोर्ट के समक्ष केंद्र की याचिका का जिक्र करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं ने झूठे तथ्य कोर्ट के समक्ष रखे हैं। इसमें यह पेश करने की कोशिश की गई है कि नक्सली समर्थक चरमपंथी निर्दोष आदिवासी हैं जिन पर सुरक्षा बलों ने अत्याचार किए हैं।
झूठी याचिकाएं दाखिल करने का चलन
केंद्र ने कहा, अब यह चलन हो गया है कि नक्सल चरमपंथी लेफ्ट विंग समर्थक या उससे आर्थिक अथवा राजनीतिक लाभ लेने वाले व्यक्ति या संस्था कोर्ट में झूठी याचिकाएं दाखिल करते हैं और कोर्ट से फर्जीवाड़ा करके संरक्षण का आदेश प्राप्त करते हैं। इस मामले में याचिकाकर्ता का एकमात्र उद्देश्य नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों द्वारा चलाए जा रहे अभियान को रोकना और खत्म करना है।
याचिका में कही गई बातें झूठी: केंद्र
केंद्र ने कहा कि कोर्ट इस मामले की सीबीआइ या एनआइए अथवा किसी और केंद्रीय एजेंसी से जांच कराने का आदेश दे। जिन लोगों ने उद्देश्य के साथ कोर्ट में याचिका दाखिल करने की साजिश रची है, उन लोगों और संस्थाओं के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर जांच की जाए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में दिल्ली के जिला जज को याचिकाकर्ताओं के बयान रिकार्ड करने का आदेश दिया था। जिला जज द्वारा उस वक्त दर्ज किए गए बयानों की प्रति केंद्र सरकार को अभी 25 मार्च के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मिली। केंद्र ने कहा है कि उन बयानों के वीडियो देखने से पता चलता है कि याचिका में कही गई बातें झूठी हैं।