केंद्र ने न्यायाधिकरण सुधार कानून का सुप्रीम कोर्ट में किया बचाव
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में नए न्यायाधिकरण कानून की वैधता का बचाव किया है। यह कानून न्यायाधिकरणों में अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति और कार्यकाल जैसे मसलों का नियमन करता है। केंद्र ने कहा कि कानूनों के परीक्षण के लिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता आधार नहीं हो सकती।
केंद्र सरकार द्वारा न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 का बचाव इसलिए अहम है क्योंकि प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने संसद में बिना बहस विधेयक पारित किए जाने को गंभीर मसला करार दिया था। मद्रास बार एसोसिएशन, कांग्रेस नेता जयराम रमेश और अन्य द्वारा अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं के जवाब में केंद्र ने यह हलफनामा दायर किया है। हलफनामे में कहा गया है कि भले ही बुनियादी ढांचे के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ हो, लेकिन यह किसी कानून की वैधता पर हमला करने का आधार नहीं है। इन याचिकाओं में कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
हलफनामे के मुताबिक, केंद्र ने कहा कि संसद द्वारा बनाए गए कानून और नियम नीति के तहत आते हैं। केंद्र ने कहा, संविधान में बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल केवल संवैधानिक संशोधन की वैधता का परीक्षण करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन जब किसी कानून की वैधता की बात आती है तो उसकी कोई प्रासंगिकता नहीं होती है।’ केंद्र ने यह भी दलील दी कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता कोई ऐसा आधार नहीं है जिसका उपयोग कानूनों के परीक्षण के लिए किया जा सकता है।