भारत में वाहनों की स्क्रैप पॉलिसी की थी सख्त जरूरत, लेकिन कबाड़ वाहन बन सकते हैं चिंता का विषय- CSE Report
पिछले दिनों सामने आई सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की स्टेट आफ इंडिया एनवायरमेंट रिपोर्ट 2021 में कई चौकाने वाले खुलासे किए गए हैं। भारत के मद्देनजर इस रिपोर्ट में कई चीजों की तरफ ध्यान आकर्षित किया गया है, जिसकी वजह से ये रिपोर्ट काफी खास हो जाती है। इस रिपोर्ट में वैश्विक महामारी से होने वाले नुकसान का भी जिक्र किया गया है। साथ ही वायु, जल प्रदूषण के बारे में भी बताया गया है। लोगों पर इसके प्रभाव के बारे में भी इस रिपोर्ट में बताया गया है।
कोविड-19 महामारी का जिक्र
कोविड-19 का जिक्र करते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरी दुनिया में इसकी वजह से 50 करोड़ बच्चे प्रभावित हुए हैं। इन बच्चों को स्कूल से मजबूरन अलग होना पड़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक इसमें आधे से अधिक अकेले भारत में हैं। इसमें कहा गया है कि इस वैश्विक महामारी ने दुनिया को और अधिक गरीब बना गया है। सीएसई प्रमुख सुनीता नारायण का कहना है कि वैश्विक महामारी की वजह से 11 करोड़ से अधिक लोग भूखमरी की चपेट में आ गए हैं। इनमें से अधिकतर दक्षिण एशिया से हैं।
2009 और 2018 में सबसे अधिक रहा प्रदूषण
इसकी एक रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2019 में 6.70 करोड़ लोगों की मौत की वजह वायु प्रदूषण थी। गौरतलब है कि सीएसई लगातार बढ़ रहे प्रदूषण पर समय-समय पर अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक करता रहता है और इसको कम करने के उपाय भी लगातार सुझाता रहता है। जहां तक वायु प्रदूषण की बात है तो भारत धीरे-धीरे इसको कम करने के लिए ऐसे वाहनों का उपयोग करने की तरफ आगे बढ़ रहा है जिनमें पेट्रोल और डीजल की खपत नहीं होगी। इस तरह के वाहनों को बिजली से चार्ज किया जा सकेगा। इसमें ये भी बताया गया है कि वर्ष 2009 और 2018 में भारत में वायु, जल और जमीन पर सबसे अधिक प्रदूषण फैला।
स्क्रैप पॉलिसी की जरूरत
सीएसई की रिपोर्ट में सरकार की नई स्क्रैप पॉलिसी का भी जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि देश में वाहनों की बढ़ती संख्या एक बड़ी समस्या है। लंबे समय तक चलने वाले वाहनों की वजह से पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचता है। रिपोर्ट में कहा गया है सरकार द्वारा लाई गई स्क्रैप पॉलिसी की सख्त जरूरत थी। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2025 तक करीब 2 करोड़ वाहन अपनी समय सीमा के अंत में होंगे या बेकार हो जाएंगे। कबाड़ वाहनों की इतनी बड़ी संख्या से पर्यावरण पर प्रतिकूल असर डालेगी। इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा।
भारत का स्थान
सीएसई की रिपोर्ट के मुताबिक सतत विकास या सस्टेनेबल डेवलेपमेंट के मामने में भारत का विश्व के 192वें देशों में 117वां स्थान है। इस विषय पर केरल, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना ने बेहतर काम किया है। वहीं बिहार, झारखंड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और उत्तर प्रदेश इस मामले में सबसे अधिक पिछड़े हैं।
जल जीवन मिशन
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2024 तक जल जीवन मिशन के तहत सभी को पीने का साफ पानी मुहैया कराने के लिए हमें जल क्षेत्र को बढ़ाना होगा साथ ही ग्राउंड वाटर को दोबारा रिचार्ज करने के उपायों पर तेजी से काम करना होगा। बारिश के पानी को भी जमीन में पहुंचाने का जरिया तलाशना होगा। इस रिपोर्ट में इस बात पर खुशी जताई गई है कि वर्ष 2014-15 में मनरेगा के अंतर्गत करीब 34 फीसद फंड जल को बचाने और इससे संबंधित दूसरे उपायों पर खर्च किया गया।
पर्यावरण संबंधित मसलों का धीमा निपटारा
पर्यावरण के मुद्दे पर सामने आई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे संबंधित दर्ज मामलों की अपेक्षा इनके निपटारे की गति काफी धीमी रही है। इसमें कहा गया है कि कोर्ट को हर दिन इससे संबंधित 137 मामलों को निपटाना होगा। इसमें ये भी कहा गया है कि देश में बाघों की संख्या जरूर बढ़ी है लेकिन इनका क्षेत्र पहले के मुकाबले कम हो गया है।